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वाले पाखण्डियों को गुरु मानकर उनके वचनों में आदरपूर्वक प्रवर्तन करना गुरुमूढ़ता (पाखण्ड मूढ़ता ) है । जो हीन आचरण वाले हैं, आरम्भ-परिग्रह में मस्त हैं, विषयों के लोलुपी हैं, उनको मानना कि ये बड़े करामती हैं, ये प्रसन्न हो जायें तो मनोवांछित कार्यों की सिद्धि हो, ऐसी विपरीत मान्यता करके उनका संग करना, उनकी सेवा-सुश्रुषा करना, अपने को कृतार्थ मानना, यह सब पाखण्डमूढ़ता है ।
आपगा - सागर-स्नान - मुच्चयः सिकताश्मनाम् । गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमूढं निगद्यते ।। 20क0श्रा ।।
जो लौकिक मिथ्याधर्मी लोगों का आचरण देखकर, नदी में स्नान करने में धर्म मानते हैं, समुद्र में स्नान करने में धर्म मानते हैं, रेत का ढेर अथवा पाषण का ढेर लगाने में धर्म मानते हैं, पर्वत से गिरने में या अग्नि में जलने में धर्म मानते हैं, उसे लोकमूढ़ता कहते हैं । व्यक्ति योग्य-अयोग्य, हित-अहित, सत्य-असत्य का विचार नहीं करते और लौकिक मिथ्यादृष्टि जीवों की देखा-देखी ये मूढ़ता के कार्य करने लगते हैं और उसमें धर्म मानते हैं।
एक जगह 8–10 दिन का मेला - जैसा लगा था। अन्दर पूजा-भक्ति भी हो रही थी। खाना फ्री था । एक युवक ने सोचा, चलो 8-10 दिन वहीं रहेंगे, खाना तो फ्री है ही । उसने नये कपड़े, नये जूते पहने और प्रोग्राम देखने चला गया। गेट पर पहुँचा तो उसने सोचा कि मैं जूता उतार दूँगा तो मेरे जूते कोई उठा ले जायेगा । अतः उसने गेट के पास एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदा और उसमें अपने जूते रख दिये, ऊपर से मिट्टी भी डाल दी। उसने सोचा कि कहीं जगह न भूल जाऊँ, सो एक पत्थर भी उस धूल पर रख दिया और निशान के लिये उस पर लाल-लाल रोली लगा दी, जो वह पूजा के लिये लाया था और गेट के अन्दर चला गया । उसके पीछे आने वालों ने सोचा इस पत्थर पर रोली क्यों लगी है, सो उन्होंने भी पत्थर को रोली लगाना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने सोचा
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