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जावेंगे। जब जीवित था, तब बेचारा रोटी के लिये तरसता था। अब तिया के दिन खीर खिलाते हैं। यह भोजन क्या मृतक के या पितृ के पास पहुँच जावेगा? नहीं पहुँचेगा। कोई अज्ञानी आश्विन कृष्ण पक्ष में ब्राह्मणों को खिलाकर मानते हैं कि यह दान-पुण्य हमारे जो पूर्वज मर गये हैं उनके पास पहुँच जावेगा और कष्ट से छुटकारा प्राप्त कर लेवेंगे। यदि विचारपूर्वक देखा जावे तो जिस जीव का तिया किया जा रहा है वह जीव पूर्व शरीर को छोड़ने के पीछे एक, दो या तीन समय में नवीन शरीर को अवश्य ही धारण कर लेता है। फिर विचार कीजिये कि वह तुम्हारे दिये हुये भोजन को कैसे ग्रहण कर सकता है? नहीं कर सकता। कई अज्ञानी अपने मृतक पिता के शरीर के टुकड़े कर चील, गिद्ध और कौवों को खिलाने में धर्म मानते हैं। कई लोग मांस, शराब, गांजा, भांग, तंबाकू इत्यादि दान देने से तथा सेवन करने से उसमें धर्म मानते हैं। कोई गाय की पूजा करने में, तलवार बन्दूक आदि शस्त्रों की पूजा करने में, दीपावली की पूजा करने में, रुपया. पैसा चाँदी, सोना, इत्यादि की पजा करने में धर्म मानते हैं। यह सब लोकमूढ़ता है।
इन मूढ़ताओं में फँसे हुये अज्ञानी जीव मिथ्यात्व के कारण संसार में ही भटकते रहते हैं। तीन मूढ़ताओं का वर्णन करते हुये आचार्य समन्तभद्र महाराज ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' ग्रंथ में लिखा है
वरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः। देवता यदुपासीत, देवता मूढ़मुच्यते।। 23 ।। जो स्वयं को अच्छा लगता है, उसे वर कहते हैं। वर की इच्छा करके आशावान् होकर जो राग-द्वेष से मलिन देवताओं की सेवा करता है, पूजन करता है, उसे देवमूढ़ता कहते हैं।
सग्रन्थाऽरम्भ-हिंसानां संसारावर्तवर्तिनाम्। पाषण्डिनांपुरस्कारो ज्ञेयं पाषण्डिमोहनम् ।। 24 ।। परिग्रह, आरम्भ और हिंसा सहित संसार-भवरों में प्रवर्तन करने
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