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अन्य धर्मावलम्बियों के द्वारा माने गये देव संख्यात भेदवाले होते हैं । जिनमें से कितने ही तो देहधारी हैं और कर्मफल भोगने में रत हैं । कितने ही कर्मचेतना से युक्त हैं । परन्तु ज्ञानचेतना वाले कोई देव नहीं । अन्य मतावलम्बी अपने—–अपने कर्म के अनुसार अवतारों का कथन करते हैं। कोई मतावलंबी राम, रामचन्द्र, कृष्ण, वामन, बुद्ध, कलकी आदि ये दस देव हैं और विष्णु के अवतार हैं । परन्तु इनमें से एक भी देव 'सर्वज्ञ' नहीं है, क्योंकि मीन और कछुआ तो जल में विचरण करने वाले पंचेन्द्रिय प्राणी हैं। सूकर यह एक पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्राणी है। अब शेष सात बचे, वे भी मनुष्य हैं सो सदोष ही हैं।
अज्ञानी मोहांधकार में फँसे हुये मनुष्य तीन मूढ़ताओं और छह अनायतन में फँसकर संसार में ही परिभ्रमण करते रहते हैं । रागी -द्वेषी देवों की सेवा करना देवमूढ़ता है । बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह से सहित कुगुरुओं को नमस्कार करना गुरुमूढ़ता है। सूर्य को अर्ध देना, चन्द्रग्रहण सूर्यग्रहण में गंगास्नान करना, अग्नि की पूजा करना, मकान की पूजा करना, गाय के पृष्ट–भाग में देवताओं का निवास मानकर उसके पृष्ठ भाग को नमस्कार करना, गौमूत्र का सेवन करना, पृथ्वी, वृक्ष, शस्त्र, पहाड़ आदि को पूजना, धर्म समझकर नदियों और समुद्रों में स्नान करना, बालू और पत्थर ढेर लगाकर पूजना, पहाड़ से गिरकर मरना, आग में जलकर मरना लोकमूढ़ता है। अज्ञानी / मूढबुद्धि जीव जब अपने घर से किसी की मृत्यु हो जाती है और मृतक शरीर को श्मशान भूमि में जला देते हैं, जलने के दूसरे दिन श्मशान में भस्म हुये शरीर की हड्डियों को भस्म में से चुनकर एकत्र करते हैं तथा राख को एकत्र करते हैं, उसके पश्चात् घर से साथ में लाये चावल, दूध, घी, शक्कर की खीर भात बनाकर तीन स्थानों पर पत्तर रखकर उनमें उस खीर भात को रख देते हैं और कहते हैं कि हे मृतक! अब अन्तिम यह खीर का भोजन करो। जो श्मशान में एकत्रित हुये हैं, वे कहते हैं कि इस भोजन को करके मेरे पित्र तृप्त हो
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