________________
हमें स्वयं के दोषों को देखकर उनका निवारण करना चाहिये। जो अपनी समस्त शक्ति को औरों की निन्दा/आलोचना करने में व्यर्थ खर्च करते हैं, वे जीवनभर दुःखी रहते हैं। किसी की बुराई करने से परमात्मा नहीं मिलता, अपितु आत्मिकता प्रदान करने से स्वयं का परमात्मा प्रगट होता है। जैसे बाँसुरी को मोड़ने से संगीत पैदा नहीं होता, बल्कि बाँसुरी को फंकने से संगीत पैदा होता है, उसी प्रकार व्यक्ति की निन्दा करने से जीवन महान् नहीं बनता, बल्कि व्यक्ति को प्रेम की फूंक देने से महान् बनता है। जीवन को पुष्पित-पल्लवित करके दिव्यानन्द से भरने के लिये उपगूहन अंग का पालन करें। दूसरे की कमी कभी न देखें, स्वयं की कमी देखें। यह साधना साँप के सीधे चलने जैसी कठिन साधना है; क्योंकि हमारे मन का दीपक शुद्ध भावना की चिमनी से रहित है, जरा-सी बाहर दोषों की हवा चलती है तो तुरन्त कंपकंपा जाती है, उसी कपकपाहट को दूर करने के लिये स्वयं पवित्र होकर अन्यों को पवित्र करें। और कभी भी किसी की बराई न करें। किसी का दोष देखकर उस दोष की निन्दा करते हुए उस व्यक्ति का तिरस्कार नहीं करना चाहिये। बल्कि उस दोष का उपगूहन करके उसे धर्ममार्ग में लगाना चाहिए। सम्यग्दृष्टि जानता है कि यह धर्म मेरा है, जिनशासन मेरा है। यदि कोई इसकी निन्दा करता है तो धर्म एवं धर्मात्मा दोनों बदनाम होते हैं और लोगों की धार्मिक आस्था, श्रद्धा, विश्वास समाप्त हो जायेगा। इसलिये धर्म, धर्मात्मा एवं स्वयं की आत्मा की सुरक्षा के लिये इस उपगूहन अंग का पालन करो।
557
0