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एक चित्रकार था। उसने एक चित्र बनाया। उसके नीचे लिखा"इस चित्र में त्रुटि हो तो बतायें ।" चित्र सड़क के किनारे रख दिया। दूसरे दिन चित्र में जगह-जगह निशान/दाग मिले। सैकड़ों लोगों ने त्रुटियाँ निकाल दी।
चित्रकार ने अगले दिन दूसरा चित्र बनाया। अबकी बार नीचे लिखा- 'इसमें कमी रह गई है, कृपया उसे सुधार दें। चित्र दिन भर रखा रहा। बहुतों ने उसे देखा, पर सुधार किसी ने नहीं किया।
दोष निष्कासन में हर व्यक्ति निष्णात है। पर गुण-ग्रहण बहुत दुर्लभ है। व्यक्ति को जो पसंद होता है, वह वही ग्रहण करता है। जैसी दृष्टि होती है, वह वैसा ही चुनाव करता है। उपगूहन अंग की उपलब्धि के लिये निज में गुणों को विकसित करें। दूसरों के गुणों का मूल्यांकन करें। इसके अतिरिक्त कुछ करने से उपगृहक नहीं बन सकते, उद्घोषक जरूर बन सकते हैं। अन्य किसी के दोषों का प्रचार करने से उसका कुछ अहित नहीं होता, स्वयं का मन दूषित होता है, जिसका परिणाम कई भवों तक भुगतना पड़ता है। ____ आचार्य समंतभद्र इसलिए समझाते हैं कि- दोष तो सब में है, उनका प्रचार करने से क्या उपलब्ध होगा? आज जो पापी प्रतीत हो रहा है, हो सकता है कि कल शुभयोग मिलने पर अपने ध्यान में लीन हो, आत्मकेन्द्रित होकर अपना कल्याण कर ले। अतः किसी को निंदनीय मत मानो। गुणों पर दृष्टि रखो, उससे ही कल्याण होता है। उच्च कुल में जन्म हो जाने मात्र से स्वयं को गुणवान मानने का दंभ नहीं करना चाहिए । गुणी कोई भी हो सकता है। गुण पर किसी का एकाधिकार नहीं है। पूरी तरह निष्पाप भी कोई नहीं है।
एक बार ईसामसीह के पास गाँव के लोग किसी स्त्री को पकड़कर लाये और कहने लगे- यह स्त्री दुराचारिणी है, इसे दंड देना है। यीशू ने
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