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________________ रहे हो? वह व्यक्ति बोला जेल से । टी.सी. बोला- आप जेल क्यों गये थे? वह व्यक्ति बोला- मैं बिना टिकिट के ट्रेन में सफर कर रहा था, पकड़ा गया, इसलिये जेल की सजा हो गई थी। टी. सी. बोला- आप जैसे-तैसे जेल से बाहर आये और फिर बिना टिकिट यात्रा कर रहे हो, इसलिये फिर से जेल में जाना पड़ेगा। T हम लोग भी अनादिकाल से बिना टिकिट यात्रा कर रहे हैं, इसलिये इस संसाररूपी जेल में पड़े हैं और अभी भी यदि बिना टिकिट यात्रा करेंगे तो पुनः संसार की 84 लाख योनियों रूपी जेल में ही जाना पड़ेगा। वह कौन-सी टिकिट है जिसे खरीदने पर इस संसाररूपी जेल में नहीं जाना पड़ता। वह टिकिट है सम्यग्दर्शन रूपी टिकिट । आचार्यों ने लिखा है - जो मुहूर्त (48 मिनट) पर्यन्त भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त करके छोड़ देते हैं, वे भी इस संसार में अनन्तकाल पर्यन्त नहीं रहते। अर्थात् उनका अधिक-से-अधिक अर्द्धपुद्गल परावर्तन मात्र ही संसार रहता है, इससे अधिक नहीं। और जो सम्यग्दर्शन से पतित नहीं होते, उनको संसार में अधिक-से-अधिक अव्रती को 15 भव एवं व्रती को 7 या 8 भवों को धारण करना पड़ता है । इतने भवों के पश्चात् उनके संसार का अन्त नियम से हो जाता है । सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग का प्रथम रत्न है। सम्यग्दर्शन को जब यह जीव प्राप्त हो जाता है, तब परम सुखी हो जाता है और जब तक उसे प्राप्त नहीं करता, तब तक दुःखी बना रहता है । सम्यग्दर्शन होते ही इसे दृढ़ श्रद्धान हो जाता है कि मैं शरीर नहीं हूँ और न ही ये शरीरादि परद्रव्य मेरे हैं। आज तक मैं भ्रम से शरीर को अपना मानकर व्यर्थ ही संसार में परिभ्रमण करता रहा। अपनी भूल का पता चल जाने से उसका जीवन परिवर्तित हो जाता है। श्री 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में आचार्य समन्तभद्र महाराज ने लिखा हैन सम्यक्त्व समं किंचित्, त्रैकाल्ये त्रिजगत्यपि । श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्व समं नान्यत्तनूभृताम् । ।34 । । जीवों का तीनकाल और तीनलोक में सम्यग्दर्शन के समान अन्य कोई कल्याण करने वाला नहीं है तथा मिथ्यात्व के समान तीनकाल और तीनलोक में W 5 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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