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________________ अन्य कोई अकल्याण करने वाला नहीं है। इस अत्यन्त कल्याणकारी सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने के लिये व्यवहार धर्म की क्रियाओं से, नियम-संयम से अपने मन को पवित्र बनाओ और जड़ शरीर एवं द्रव्यकर्म व भावकर्म से भिन्न चैतन्यस्वरूपी आत्मा का चिंतन-मनन करो। जिनागम में सम्यग्दर्शन की महिमा सर्वत्र बतलाई गई है - तीनलोक तिहुकाल मांहि नहिं, दर्शन सम सुखकारी। (छहढाला) तीनलोक और तीनकाल में सम्यग्दर्शन के समान सुख प्रदान करने वाला अन्य कोई नहीं है। हे भव्य जीवो! तुम इस सम्यग्दर्शनरूपी अमृत का पान करो। यह सम्यग्दर्शन अनुपम सुख का भण्डार है, सर्वकल्याण का बीज है और संसार-समुद्र से पार उतारने के लिये जहाज है। इसे एकमात्र भव्यजीव ही प्राप्त कर सकते हैं। पापरूपी वृक्ष को काटने के लिये यह कुल्हाड़ी के समान है। पवित्र तीर्थों में यही एक पवित्र तीर्थ है और मिथ्यात्व का आत्यंतिक नाशक है। (ज्ञानार्णव) एक ओर सम्यग्दर्शन का लाभ प्राप्त हो और दूसरी ओर तीनलोक का राज्य प्राप्त हो, तो तीनलोक के राज्य की अपेक्षा भी सम्यग्दर्शन का लाभ श्रेष्ठ है, क्योंकि तीनलोक का राज्य तो मिलने पर सीमित काल में छूट जाता है, परन्तु सम्यग्दर्शन तो अक्षय सुख प्राप्त कराता है। (भगवती आराधना) शुद्ध सम्यग्दर्शन के बिना संसार के दुःखों से पार उतरने का अन्य कोई उपाय नहीं है। (श्रावकधर्म प्रदीप) । चारों आराधनाओं में श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) ही प्रधान आराधना है, क्योंकि अश्रद्धापूर्वक की गई क्रिया फलदायी नहीं होती। एक बार एक सज्जन के यहाँ पंगत थी, बहुत से लोग खाने पहुँच गये। सभी खाना खाने लगे, पर एक व्यक्ति थाली रखे बैठा है। किसी ने उससे पूछा-भैया! क्या चाहिये? चटनी, मिर्च, नमक क्या चाहिये? कुछ तो बोलो। वह भैया बोले-सबकुछ रखा है, पर वह नहीं है। 'क्या नहीं है?' भूख नहीं है। ऐसे ही सबकुछ है, देव-शास्त्र-गुरु का समागम मिल गया है, पर क्या नहीं है? श्रद्धा नहीं है। यदि श्रद्धा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है। 06_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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