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________________ पिता ने कहा- यह सम्भव नहीं है, तो बालक रोता है, दुःखी होता है। भला बताओ बालक की उस हठ को कौन पूरी कर सकता है? उस हठ के ही कारण बालक दुःखी होता है। ठीक ऐसे ही संसारी प्राणियों ने परवस्तुओं के पीछे तेज हठ कर ली है। जिस प्रकार वह बच्चा हाथी को जेब में रखने के लिये मचल रहा है, उसी प्रकार यह जीव परपदार्थों को लेने के लिये मचलता है। अरे भैया! अनहोनी बात क्यों चाहते हो? परपदार्थों में अपनत्वबुद्धि रखकर उन्हें प्राप्त करने की इच्छा रखते हो और व्यर्थ में दुःखी होते हो। दुःख मिटेगा परद्रव्यों से भिन्न आत्मा की श्रद्धा कर सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से। सम्यग्दर्शन होने पर इसे ज्ञान हो जाता है कि यह सब दिखनेवाला बाह्य जगत प्रपंच है, मायाजाल है, धोखा है। फिर वह संसार में नहीं फँसता, बल्कि संसार में रहता हुआ भी जल में कमल की भांति भिन्न रहता है। जाल में पक्षी उसी समय तक फँसते हैं, जब तक उन्हें यह पता नहीं चल जाता कि इन सुन्दर दानों के नीचे जाल बिछा हुआ है। इसी प्रकार इस संसारचक्र में व्यक्ति उसी समय तक फँसता है, जब तक कि उसे यह पता नहीं चलता कि इन सुन्दर आकर्षणों तथा प्रलोभनों के नीचे माया छिपी हुई है। जिस प्रकार यह जानकर कि यह तो जाल है, पक्षी उस पर फैले हुए दानों का लालच नहीं करते और उसमें फँस नहीं पाते, इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव जब समझ जाता है कि यह बाह्य जगत केवल माया है, प्रपंच है, धोखा है, तो वह इसमें यत्र-तत्र फैले हुये प्रलोभनों का लालच नहीं करता और उसमें फँस नहीं पाता। मिथ्यात्व का फल संसार है और सम्यक्त्व का फल मोक्ष है। एकमात्र सम्यग्दर्शन ही ऐसा है जो इस संसार रूपी जेल से छुड़ा सकता है। एक बार एक व्यक्ति ट्रेन से सफर कर रहा था। वह गया और एक सीट पर सो गया। थोड़ी देर बाद टी.सी. आया और जैसे ही उसे जगाया, वह घबराकर बैठ गया। चोर की दाड़ी में तिनका होता है। जो भी गलत काम करता है, पाप करता है, उसे हमेशा भय बना रहता है और जो धर्म करता है, वह हमेशा निर्भय रहता है, उसे कोई भय नहीं होता। जैसे ही टी.सी. ने उससे टिकिट माँगा, वह बोला-टिकिट तो नहीं है। टी.सी. ने पूछा-आप कहाँ से आ 04 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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