________________
सम्यग्दृष्टि के अंगों में प्रथम अंग का नाम है निःशंकित अंग । इहलोक का भय न करना कि मेरा कैसे गुजारा हो, क्या हो। जो हो, सो हो। हमारा आत्मा तो इस अपने आत्मा के चैतन्य रस का पान किया करे, तो उससे तृप्ति है। विषय-भोगों से तृप्ति नहीं है। इस वैभव से, ठाठबाट से इस आत्मा का कुछ भी लाभ नहीं है। अतः सम्यग्दृष्टि को इहलोक का भय नहीं होता। इसी प्रकार उसे परलोक का भय भी नहीं रहता। 'हाय! परलोक में क्या होगा? हमको स्वर्ग मिले। कहीं खोटी गति न मिले, कहीं खोटे भव न मिल जायें, फिर क्या होगा? इन सूकरों को, गधों को, कुत्तों को देखो, कितना दुतकारे जाते हैं, कितने कष्ट में हैं? कहीं ऐसी कोई खोटी गति न मिल जाए।' इस तरह का भय नहीं होता। उसका कारण यह है कि जिसका आचार-विचार पवित्र है, जो सम्यक्त्व से विभूषित है, उसको खोटे भव का संदेह क्यों होगा? जो हीन आचरण वाले हैं, वे अपने हीन आचरण को याद करके संदेह करने लगते हैं कि कहीं कोई खोटा भव न मिल जाये । सम्यग्दृष्टि को परलोक का भय नहीं होता।
एक कथन है कि किसी तीर्थंकर के समवसरण में एक श्रावक जा रहा था। उस श्रावक को एक मुनिराज के प्रति बड़ा धर्मानुराग था। रास्ते में उसे वे मुनिराज एक पलास (छेवला) के पेड़ के नीचे बैठे मिले । वह श्रावक मुनिराज के पास गया, तो मुनिराज ने उससे कहा कि तुम भगवान् के समवसरण में जा रहे हो, जरा हमारे सम्बन्ध में भी पूछ लेना कि इन मुनिराज के कितने भव शेष रह गये हैं अर्थात् कितने भवों के बाद मुक्ति होगी? श्रावक पहुँचा, वहाँ प्रश्न किया, तो उत्तर मिला कि जिस पेड़ के नीचे मुनिराज बैठे हैं, उस पेड़ में जितने पत्ते हैं, उनके उतने भव शेष हैं, इसके बाद मोक्ष होगा।
वह श्रावक जब लौटने लगा, तो खुश हुआ कि अब मुनिराज के थोड़े ही भव शेष रह गये हैं। पलास के वृक्ष में कम पत्ते होते हैं, करीब 50 पत्ते होंगे। वह बड़ा खुश हुआ और जब आकर देखा कि वे मुनिराज तो इमली के पेड़ के नीचे बैठे हैं। यह देखकर वह श्रावक बड़ा दुःखी हुआ। जब मुनिराज ने पूछा कि ऐ श्रावक! क्या बात है? तो वह माथा ठोककर बोला कि महाराज! उत्तर तो बड़ा अच्छा मिला था कि जिस पेड़ के नीचे मुनिराज बैठे हैं, उसमें जितने पत्ते हैं,
0 4640