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उनके उतने भव शेष हैं, पर आप तो इमली के पेड़ के नीचे बैठे हैं, इसमें तो अनगिनत पत्ते हैं। तब मुनिराज ने उसे समझाया, अरे! इसमें घबड़ाने की क्या बात है? आखिर इन पत्तों का भी अंत है। अतः यह तो निश्चित हो गया कि इतने भवों के बाद मोक्ष प्राप्त होगा । अनन्त भवों के सामने ये भव तो न के बराबर हैं। सम्यग्दृष्टि पुरुषों को परभव का भी भय नहीं रहता । वे तो अपने चैतन्य रस का पान कर तृप्त रहते I
सम्यग्दृष्टि को वेदना का भय भी नहीं रहता । शरीर में कोई वेदना हो तो जिसे शरीर में जैसी ममता है, उसको वैसी वेदना होती है। ज्ञानी पुरुष शरीर से अपना हित मानते नहीं, बल्कि अपने घात का कारण समझते हैं। यदि यह शरीर न होता, तो आत्मा कितने आनन्द में रहता ? इस शरीर के सम्बन्ध से ही तो आत्मा विपत्ति में पड़ा है। यह शरीर आत्मा का मित्र नहीं है, यह तो विपदा का कारण है। ज्ञानी पुरुष समझते हैं कि हमारी आत्मा इस शरीर में फँसी है, इतनी भर वेदना है, इसके आगे इस मुझ आत्मा में कोई वेदना नहीं है । शरीर की वेदना देखकर अज्ञानी जीव घबड़ा जाते हैं कि हाय ! अब क्या होगा, अभी कितनी सर्दी अथवा गर्मी बढ़ेगी? यह दृष्टि होने से उसको बड़ी वेदना रहती है, पर ज्ञानीजीव को वेदना नहीं रहती । ज्ञानीपुरुष को शरीरादि की वेदना का भय नहीं रहता ।
एक सनतकुमार चक्रवर्ती हुए हैं। वे रूप में इतने सुन्दर थे कि इनकी चर्चा स्वर्गों में होने लगी कि इस समय मनुष्यलोक में सनतकुमार से बढ़कर और किसी का रूप नहीं है । अतः दो देव परीक्षा करने आये । उन्होंने सनतकुमार को कभी नहीं देखा था। सनतकुमार उस समय अखाड़े में कुश्ती लड़कर धूल से भरे हुऐ वैसे ही शरीर से बैठे थे। दोनों देवों ने देखा तो वे आश्चर्य करने लगे कि इनका शरीर कितना सुन्दर है? जब दोनों देव सनतकुमार की सुन्दरता पर आश्चर्यचकित थे, तब एक-दो मनुष्यों ने कहा कि तुम अभी इनका रूप क्या देखते हो? जब दरबार लगेगा, श्रंगार करके ये सिंहासन पर विराजेंगे तब इनका रूप देखना। दोनों देव फिर दोपहर में आये, जबकि दरबार लगा हुआ था। उस समय सनतकुमार के उस रूप को देखकर देवों ने माथा धुना । लोगों
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