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प्रकार बन्धु व सहायक नहीं है। इसलिये एक धर्म का ही सेवन करो और अन्याय व अनीति से सदा दूर रहो।
भीष्म पितामह शर-शैय्या पर पड़े युधिष्ठिर को धर्म का उपदेश दे रहे थे। इसी बीच द्रौपदी को हँसी आ गई। भीष्म ने पूछा-बेटी! तू इतनी सुशील है, फिर भी ऐसे असमय में बड़ों के समक्ष तुझे हँसी क्यों आई?
द्रौपदी बोली-पितामह! अपराध क्षमा करें। मेरे मन में यह विचार आया कि जब भरी सभा में मेरे वस्त्र खींचे जा रहे थे, तब आप भी वहाँ उपस्थित थे. उस समय आपका यह धर्म कहाँ चला गया था? यही सोचकर मुझे हँसी आ गई। पितामह बोले -बेटी! तुम्हारा सोचना ठीक ही है। उस समय दुर्योधन का अन्यायपूर्ण उपार्जित कुधान्य खाने से मेरी बुद्धि भी अशुद्ध हो गई थी। मेरा मन कुसंस्कारयुक्त हो गया था। इसी कारण से अन्याय के विरुद्ध न बोल सका। मनुष्य जैसा अन्न खाता है, वैसा ही उसका मन / बुद्धि का निर्माण होता है। अन्यायोपार्जित, कुसंस्कारी, कुधान्य का सेवन न किया जाये, भले ही भूखा क्यों न मरना पड़े। क्योंकि मन/बुद्धि के विकृत हो जाने पर समस्त जीवन ही विकृत हो जाता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। ___ महाभारत के युद्ध की घोषणा होने के बाद युद्धस्थल का चयन करना था। श्रीकृष्ण अर्जुन आदि को अपने साथ ले गये। चारों ओर भूमि का निरीक्षण करते रहे कि कौन-सा स्थान युद्ध के लिये उपयुक्त होगा?
एक जगह श्रीकृष्ण ने देखा कि गन्ने का एक खेत था। पति खेत में काम कर रहा था। उसकी पत्नी उसके लिये घर से कुछ जलपान लाई थी। पति जलपान करने लगा तो पत्नी खेत में पानी देने लगी। नाले में एक स्थान पर पानी का बहाव रुक नहीं रहा था। वह बड़ी बैचेन हुई। पानी रोकने के लिये उसे कोई वस्तु दिखाई नहीं दे रही थी। अन्त में उसने अपने ही छोटे बच्चे को लिटा दिया। पानी तो रुक गया, पर बच्चा मर गया। यह दृश्य देखकर श्रीकृष्ण वहीं रुक गये। श्रीकृष्ण ने कहा – अर्जुन! युद्ध के लिये सर्वश्रेष्ठ जगह इसके
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