________________
नया व्यक्ति साथ में चल देता है। वह यह नहीं जानता है कि घर में कैसे घुसा जाता है और कैसे बाहर निकला जाता है? घर के अन्दर सब घुस गए। एक बूढ़े आदमी ने खांस दिया तो वे तीनों भाग गए। अब वह नया आदमी भागना नहीं जानता था, तो उसने और कुछ न सोचा, घर में जो ऊपर कड़ी लगी हुई थी, उस पर जाकर बैठ गया। गाँव के बहुत से लोग एकत्रित हो गये, हल्ला मच गया। वहाँ दसों आदमी थे, तरह-तरह के सवाल कर रहे थे। घर के मालिक ने कहा कि हम सब बातों को क्या जानें, ऊपर वाला जाने। उसके कहने का तात्पर्य 'भगवान्' से था कि भगवान् जानें। पर छिपे हुये नये चोर ने यही समझा कि यह मेरे लिए कह रहा है। उसने सोचा कि मैं पकड़ा न जाऊँ, इसलिए बोला कि क्या मैं ही जानूं? वे तीन आदमी क्यों न जानें? अब वह नया चोर पकड़ लिया गया, बांधा गया, मारा-पीटा गया, बन्द हो गया।
यहाँ पर उसने केवल कल्पना ही तो की थी कि यह मेरे लिए कह रहा है, इसलिए पकड़ा गया, मारा गया और बन्द कर दिया गया। इसी प्रकार यह अज्ञानी प्राणी परपदार्थों को अपना मानने की कल्पना करता है और व्यर्थ ही दुःखी होता है। अतः परपदार्थों से भिन्न आत्मा का श्रद्धान कर सम्यग्दर्शन प्राप्त करो। सम्यग्दर्शन के बिना मुक्ति होने वाली नहीं हैं। आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने ‘रयणसार' ग्रंथ में लिखा है
सम्मत्तगुणाई सुगदी, मिच्छादो होदि दुग्गदी णियमा। इदि जाण किमिह बहुणा, जं रुच्चदे तं कुज्जा ।।62 ||
सम्यग्दर्शन से सद्गति की एवं मिथ्यादर्शन से दुर्गति की प्राप्ति होती है। कितना कहूँ, हम कह-कहकर थक गये, इसलिये आपको जो रुचिकर लगे, वो करो। हमने तो आपको दोनों के परिणामों के बारे में बता दिया है।
__ श्री अमृतचन्द स्वामी ने कहा है-'सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं ज्ञान-वैराग्यशक्तिः। सम्यग्दृष्टि जीव के नियम से ज्ञान और वैराग्य की शक्ति प्रकट होती है। वह अपनी दृष्टि को अंतर्मुख रखता है। मैं अनंतज्ञान का पुंज, शुद्ध, रागादि विकार से रहित, चेतन द्रव्य हूँ। मुझमें अन्य द्रव्य नहीं
20 447_n