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पदार्थों से मुझे दुःख है, हम दुःख के कारण बन जावेंगे और यदि हम प्रबल रहे, तो दुनियाँ के कोई भी पदार्थ मुझे दुःखी नहीं कर सकते हैं।
___ कभी देखा होगा कि जब बच्चे अथवा कोई भी कहते हैं कि पीठ पर मुक्के लगाओ। जितने लगा सकते हो, लगाओ। उस बच्चे की हिम्मत बड़ी हो जाती है। वह पीठ कड़ी कर लेता है और सांस भर लेता है, वह मुक्के लगवा लेता है, सह जाता है, उसे क्लेश नहीं होता है। उनकी बात क्या कहें? जो व्यायाम दिखाने वाले होते हैं, अपनी छाती पर से हाथी का पैर रखवाकर निकलवा देते हैं। वे भीतर से तैयारी कर लेते हैं, इस कारण उन्हें दुःख नहीं होता। उनका दिल कड़ा बन जाता है। वे क्लेश महसूस नहीं करते हैं। इसी प्रकार यदि भीतर के मन को कड़ा बना लिया जाय, संयम कर लिया जाय, तो यह जानना ही तो है कि अरे! मैं तो जान गया। जानना ही को जान गया। ऐसी कड़ी हिम्मत कर लो, तो जो विपदायें भी आयेंगी, वे चली जायेंगी. इन विपदाओं का मझ पर असर नहीं होगा। अपने विक्रम में रहे, तो कर्म के विक्रम से विपदाओं का असर न होगा। ढीले-ढाले बैठे हैं, भीतर से कोई तैयारी नहीं है और यदि कोई मुक्का लगा देवे, तो अत्यन्त दुःख होगा। इसी तरह ढीला-ढाला शिथिल पड़ा हुआ है तो यह असर करता है। यह आत्मा स्वयं ही बाहरी चीजों का निमित्त पाकर अपने आप में आपका असर डाल लिया करता है। जैसे कहते हैं कि खुद तो जगते नहीं, खुद तो स्वाधीन नहीं होते और कहते हैं कि स्टेशन लुटेरा है। अरे! खुद जगते रहो, तो कौन लूटेगा? इसी तरह हम खुद स्वाधीन नहीं होते, नाम लगता है घर का, गृहस्थी का, धन का, वैभव का। इन चीजों ने तो उसे लूट लिया, बरबाद कर दिया, फांस लिया। नाम बदनाम करता है परपदार्थों का
और पर को अपना मानने की कल्पना स्वयं करता है, इसीलिये दुःखी भी होता है।
__ तीन चोर थे। चोरी करने जा रहे थे। रास्ते में एक नया आदमी मिला, बोला-कहाँ जा रहे हो? बोले-चोरी करने जा रहे हैं। उसने कहा कि इससे क्या होगा? बोले-धन लूटेंगे। अगर धन लेना है, तो तुम भी चलो।
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