________________
साथी दूसरा कुत्ता मिला। वह बोला-तू गाड़ी के नीचे क्यों चल रहा है ? पहला कुत्ता बोला-तू देख नहीं रहा है, मैं गाड़ी को चला रहा हूँ? दूसरा कुत्ता हँसने लगा, बोला-अरे! गाड़ी तो बैल चला रहे हैं, तू नहीं चला रहा है। पहला कुत्ता बोला- नहीं, मैं इस गाड़ी को चला रहा हूँ। यदि मैं रुक जाऊँगा तो ये गाड़ी भी रुक जायेगी। वह कुत्ता रुक गया और उसी समय भाग्य से बैल भी रुक गये तो गाड़ी रुक गई। वह कुत्ता गर्व के साथ बोला-देख, कहा था कि मैं ही गाड़ी चला रहा हूँ।
इसी प्रकार यह संसारी प्राणी सोचता है कि मैं ही सारे संसार को चला रहा हूँ। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि इसके करने के अधीन कुछ भी नहीं है। यह कर्तृत्वबुद्धि ही दुःख का कारण है। ___ जो आत्मा को नहीं जानते, उनके भीतर मोह की गहलता अपना अड्डा जमाए रहती है, जिससे वे बेखबर होकर भवविपिन में भ्रमण करते हुए महान त्रास और कष्ट को पाते हैं। बड़े दुःख की बात है कि यह अज्ञानी आप ही मादक वस्तुओं का सेवन करता है और आप ही उनके असर से बावला हो जाता है। बार-बार यह दशा होती है, तो भी मादक वस्तु लेने की आदत को नहीं छोड़ता है। पर यदि यह एक बार भी चित्त को कड़ा करके इस नशा लेने की आदत को छोड़ देवे, बहुत ही जोर-जुलम करके संकट सह करके भी इसको ग्रहण न करे, ऐसा यदि दस, बीस बार भी करे, तो इसकी आदत छट जावे और तब फिर अपने स्वाभाविक चलन में चले और अपनी हानि न करे। संसारी प्राणी भी इसी तरह राग, द्वेष, मोह रूप गहलता में न पड़े, चित्त को जोर-जुलम से इष्ट में राग व अनिष्ट में द्वेष से बचावे और अपने शुद्ध ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव में एक बार भी ठहरे, तो फिर इसको भले प्रकार निश्चय हो जावे कि मोह-मद्य की गहलता से रहित आत्मा का स्वभाव कितना सुन्दर व शान्त है। जो अपनी आत्मा को पहचान लेगा, वह फिर अपना बल लगाकर उस मोह की शराब पीने से बचेगा। इस प्रकार के पुन:-पुनः प्रयत्न में रहते हुए इसकी मोह को अपनाने की आदत छूटती जाती है और तब यह धीरे-धीरे स्वास्थ्य युक्त होता हुआ स्वाभाविक ज्ञान-दर्शन स्वरूप में लयता प्राप्त करता है।
0 410