________________
एक बालक ने दीक्षा ले ली ओर जंगल में साधनारत हो गया। वह घड़ी भी आ गई जब उस बालक की माँ अपनी कुँआरी कन्या को लिए, उसकी गोद भरने को जा रही थी। कोई शुभ काम करने जा रहा हो और उसे मुनिराज दिख जायें, तो उसका हृदय गद्गद हो जाता है। अरे! यह तो मेरा ही बेटा है, और माँ गद्गद् हो गई। माँ वन्दना करके कहती है- 'बेटे ! ये तरी बहिन बड़ी हो गई है, इसे देख लो, मैं इसकी शादी करने जा रही हूँ। हे पुत्र ! ये तो बताओ इस जंगल में लुटेरे तो नहीं हैं? पर माँ के आने से पहले डाकू वहीं से निकले थे। डाकुओं ने कहा कि भगा दो इसे, परंतु सरदार ने कहा कि 'ये भारती के देवता हैं। हिमालय हिल जायेगा, पर ये दिगम्बर तपोधन नहीं हिलेंगे । इनको शत्रु या मित्र से कोई प्रयोजन नहीं है। ये हमारे कार्य में विघ्न कभी नहीं कर सकते हैं। इनकी पूजा करो। देखो आज अपन वंदना करके जा रहे हैं, आज अच्छा ही मिलेगा। महाराज ने माँ से कुछ नहीं कहा, पलक उठाकर देखा भी नहीं । वे कुछ दूर चलीं ही थीं कि लुटेरों ने घेर लिया, माँ-बहिन दोनों को पकड़ लिया, सम्पूर्ण जेवरात छीन लिये। सरदार प्रसन्न होकर कहता है- 'देखो, प्रातः हमने कहा था न कि दिगम्बर तपोधन किसी से राग-द्वेष नहीं करते।' सरदार ने जो बोला वह माँ ने सुन लिया। माँ ने पूछा- क्या कह रहे हो? 'माँ आपको रास्ते में दिगम्बर साधु मिले होंगे?' हाँ, मिले थे। 'मैंने मित्रों से कहा था कि इनके दर्शन से हमें लाभ मिलेगा। आज देखो मिल गया। माँ ने सुना तो कहा—'उसको मालूम था कि आप यहाँ हो। आप अपनी कटार दे दो ।' सरदार घबरा गया। उसने पूछा- आप कटार क्यों माँग रही हो? 'मैं इस कटार से अपनी गन्दी कोख को काटना चाहती हूँ ।' क्यों? 'जिस बेटे को हमने नौ महीने पेट में रखा हो और जिससे मैंने पूछा भी था कि जंगल में कोई डाकू तो नहीं है, वह अपनी बहिन व माँ की भी रक्षा नहीं कर सका, ऐसी कोख को मैं चीरना चाहती हूँ। सरदार ने कहा- माँ ! क्या वह आपके बेटे हैं। 'हाँ, वह मेरा बेटा है।' सरदार तुंरत जमीन पर गिर पड़ता है, पैर से लिपट जाता है। 'हे माँ! इस कोख को अपवित्र मत कहो। इस कोख ने ऐसे निर्मोही को जन्म दिया है, जिसे
3962