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माँ-बहिन का राग भी हिला नहीं सका। इनसे बड़ा जगत् में कोई महा साधु हो सकता। हे माँ! यह लो अपना धन और लो मेरे द्वारा और धन, और मैं स्वयं आपको जंगल से पार कराने चलता हूँ, लेकिन ऐसे योगी की माँ बनकर अपनी कोख को अपवित्र मत कहिए । संसार में ऐसी कोख हो ही नहीं सकती।
यह मोह ही है जो हमें अपने आत्म स्वरूप का बोध नहीं होने देता। अतः जगत् में काई पाप छूटे या न छूटे, पर मोह छूट जाये। आप स्वयं पर दया करके सम्यग्दर्शन के सोपानों एवं पाँच लब्धियों को अपने जीवन में उतारकर मोह को छोड़ने का प्रयास करो। मोह कर्म ऐसा होता है, जैसे फौज का कमांडर । अगर कमांडर मारा जाए तो फौज ठहर नहीं सकती। उसी प्रकार अगर मोहकर्म को जीत लिया जाए, तो शेष कर्म ठहर नहीं सकते। दर्शनमोह एवं अनन्तानुबन्धी कषायों के उपशम होने पर उपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है।
क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन - मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माय, लोभ इन छह सर्वघाती प्रकृतियों के वर्तमान काल में उदय आनेवाले निषेकों का उदयाभावी क्षय तथा आगामी काल में उदय आनेवाले निषेकों का सदवस्थारूप उपशम और सम्यक्त्व प्रकृति नामक देशघाती प्रकृति का उदय रहने पर जो सम्यक्त्व होता है, उसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन कहते हैं। इस सम्यग्दर्शन में सम्यक्त्व प्रकृति का उदय रहने से चल, मल, अगाढ़ दोष उत्पन्न होते रहते हैं।
चल दोष- अपने द्वारा स्थापित कराई गई अरहंत भगवान की प्रतिमा में 'यह मेरे भगवान् हैं, अन्य के द्वारा स्थापित करने पर यह दूसरे के भगवान् हैं।' इस प्रकार भगवान का भेद करना चल दोष है।
मल दोष- शुद्ध स्वर्ण मल से मलिन होता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन भी सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से शंकादि दोषों द्वारा मलिन हो जाता है।
अगाढ़ दोष - सभी अरहंत भगवान् में समान शक्ति होते हुये भी शान्तिनाथ भगवान् शान्ति के कर्ता हैं, पार्श्वनाथ भगवान् विघ्नों का नाश करने
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