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थे, उतने में बिक गया। पूछा- मुनाफा क्या मिला? कहा तीन आने का यह मिट्टी का हुक्का |
इसी तरह ये सारे पदार्थ एक पैसे से लेकर खरबों रुपये तक हैं। ये सारे-के-सारे मुफ्त में ही मिले हैं। चीज तो न्यारी है। तो, भैया! यह सब जो पाया है, सो मुफ्त में ही मिला है और मुफ्त में ही जायेगा, हाथ कुछ नहीं रहेगा । क्या भाव बना कि यह मेरा है, परिवार मेरा है, ऐसा उन्होंने परिणाम बना लिया । परन्तु ज्ञानी पुरुष जानता है कि दुनियाँ में मिला मुफ्त में यह है और मिटेगा भी मुफ्त में यह । कोई साथ में नहीं रहेगा। परभाव मिटने को आये हैं और मिटने
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जायेंगे। कुछ मुनाफा मिला कि नहीं मिला? कहते हैं कि मिलेगा क्या? पाप का हुक्का । जो-जो मिला है, वह नहीं रहेगा। किसी के पास नहीं रहेगा। अरबपति, खरबपति के पास नहीं रहेगा, पंडित के पास नहीं रहेगा, कुली के पास नहीं रहेगा, पहलवानों के पास नहीं रहेगा। पर जो पुण्य-पाप जिन्दगी में किया, वह साथ रहेगा। उसके अनुसार सुख - दुःख के साधन सब मिलेंगे।
भैया! जब अज्ञान था, तब भोगों के प्रति प्रेम था, ठीक है, पर अब तो ज्ञान है। तू तो एक चेतनामय पदार्थ है, उसे तो भूल गया और आगे की दुनियाँ में दृष्टि रखकर इस माया की दुनियाँ में लग रहा है और आनन्द के स्वप्नों को सत्य समझ रहा है। इसी दुःख होते रहते हैं। अब तक तुमने कितने भव व्यतीत कर डाले ? अब केवल एक इस भव को ही भोगरहित व ज्ञानसहित बिताओ तो कोई हर्ज नहीं । यह एक भव जो अब पाया है, तो यह समझ लो कि इसको पाया ही नहीं है । पाया है तो अपने में गुप्त रहकर ही धर्मसाधना के लिये पाया समझो, तो मुक्ति का मार्ग मिल जायेगा, शान्ति और आनन्द का मार्ग मिल जायेगा, फिर तू सदा के लिये सुखी हो जायेगा। एक मोह को छोड़ दे तो सदा के लिये तेरे क्लेश मिट जायेंगे ।
यह तेरा अपना चुनाव है कि चाहे स्वयं को तू शरीररूप देखे, चाहे चैतन्यरूप। शरीररूप देखने का फल तो चौरासी लाख योनियों में अनादिकाल से तू निरन्तर भोगता आ रहा है। जिन्होंने स्वयं को चैतन्यरूप देखा, वे
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