________________
गर्दन उठाई, एक बार बुढ़िया को देखा और रोने लगा। अब तो बुढ़िया भी उसके साथ रोने लगी। बोली-तू क्यों रो रहा है ? तेरे रोने का क्या कारण है, बता । अबकी बार बहुत झकझोर कर उसने उठाया, तो युवक बोला-क्या बताऊँ अम्मा? मैं गलत गाड़ी में बैठ गया हूँ। उस अम्मा ने कहा-बेटा! गलत गाड़ी में बैठ गया है तो रोने से क्या होगा? अगले स्टेशन पर उतर जाना और गाड़ी बदल लेना। वह युवक बोला – अम्मा! ऐसा तो मैं बहुत देर से सोच रहा हूँ, पर आजकल रिजर्वेशन के बिना गाड़ी में जगह नहीं मिलती। अब मैं दूसरी गाड़ी में बै, यदि भीड़-भाड़ होगी, तो पता नहीं जगह मिले या न मिले। यह डिब्बा एकदम खाली है। इस डिब्बे को छोड़कर मैं दूसरी गाड़ी में कैसे बै?
यही स्थिति हर व्यक्ति की है। वह मिथ्यात्व की, अज्ञान की गलत गाड़ी में बैठ गया है। रोना रोता है। आचार्य कहते हैं – गाड़ी बदल लो, रत्नत्रय की गाड़ी में बैठ जाओ। वह कहता है-'महाराज! ये घर-परिवार का डिब्बा छूट जायेगा तो काम कैसे चलेगा?' डिब्बे के व्यामोह में हम गाड़ी नहीं बदलना चाहते। जब तक हम गाड़ी नहीं बदलेंगे, सात तत्त्वों के विपरीत श्रद्धान को छोड़कर सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं करेंगे, तब तक हमारी यात्रा सही कैसे होगी? यह जीव दीर्घकाल से लगातार मोहरूपी निद्रा में सो रहा है। अब तो उसे परद्रव्यों से भिन्न आत्मा का श्रद्धान कर सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिये।
। प्रत्येक जीव सुख चाहते हैं। सुख प्राप्ति का केवल एक ही उपाय है, दूसरा नहीं। वह यह है कि मैं शरीरादि परद्रव्यों से भिन्न चैतन्य स्वरूपी आत्मा हूँ। मैं सबसे निराला, एक जुदा पदार्थ हूँ। ऐसा अपने आप में विश्वास आ जाना, यह ही सुख का उपाय है। ये जितने भी रागादि भाव हैं, वे मेरे नहीं हैं। सुखी होने का मूल उपाय यही है कि राग को नष्ट कर दो। राग करके कष्ट दूर नहीं हो सकते। सबसे बड़ा विकट राग तो यही है कि अपने को नाना विकारों रूप मानना। परमार्थतः मैं शुद्ध ज्ञायकस्वरूप हूँ। अपने आप को समस्त परद्रव्यों से भिन्न शुद्ध चैतन्य मात्र श्रद्धान करना ही सम्यग्दर्शन है और यही सुखी होने का एकमात्र उपाय है। जब तक यह कुज्ञान था कि पर-पदार्थ से उसे सुख मिलेगा, तब तक
LU 37 un