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ने जेब से चूर्ण की पुड़िया निकालकर वैद्य के सामने पटक दी और बोला- यह है वह पुड़िया । वैद्य ने कहा- - दूसरी पुड़िया ? वह बोला- दूसरी तो मैं काढ़ा बनाकर पी गया। यह पुड़िया आँख में डाली थी, दवा ज्यादा थी, इसलिये बच गयी। वैद्य ने कहा कि इसको निकालो यहाँ से । उल्टी दवा तो यह खुद लेता है और कहता है कि तुमने मेरी पीड़ा बढ़ा दी ।
इसी तरह सभी बहिरात्मा जीव रोगी हैं। उनकी आँख की बीमारी क्या है ? वास्तविक बात सूझती नहीं है । परद्रव्यों से भिन्न आत्मस्वरूप को जानते नहीं और शरीरादि को ही 'मैं' मान लेते हैं। यह अज्ञानी प्राणी तप के माध्यम से अपनी इच्छाओं का निरोध नहीं करता, उल्टा परपदार्थों में अपनत्व बुद्धि रखकर उन्हें प्राप्त करने की इच्छा रखता है जिससे इसका संसार रोग (परिभ्रमण ) और बढ़ जाता है।
आकुलता का मिट जाना ही सच्चा सुख या मोक्ष है । किन्तु मिथ्यादृष्टि मोक्ष के स्वरूप को आकुलता रहित नहीं मानता, उसे अति कठिन आकुलतामय मानता है। यह मोक्ष तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है। इन सात तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान अग्रहीत मिथ्यादर्शन कहलाता है। अतः इन सात तत्त्वों की भूल को समझकर उसे छोड़कर सम्यग्दर्शन प्राप्त करो ।
एक बार एक युवक ट्रेन से सफर कर रहा था और अपने दोनों पैरों के घुटनों पर सिर रखकर रोये जा रहा था। ट्रेन में भीड़भाड़ नहीं थी । सामने एक वृद्धा बैठी थी। उस बूढ़ी अम्मा से युवक का रोना नहीं देखा गया उसने युवक से पूछा कि बेटे ! तुझ पर क्या आ पड़ी है जो तू इतनी जोर-जोर से रोये जा रहा है? परन्तु युवक ने कोई जवाब नहीं दिया। अक्सर ऐसा होता है कि जब किसी पर कोई सहानुभूति व्यक्त करने जाता है तो उसका रोना और तेज हो जाता है। युवक और तेजी से रोने लगा । वृद्धा से रहा नहीं गया, वह अपने स्थान से उठी और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये बोली बेटे! तू मुझे अपनी माँ समझ । तेरे ऊपर क्या आपत्ति आ पड़ी है ? तू मुझे बता । मैं तुझे हर संभव मदद दूँगी। बुढ़िया के इस आत्मीय आग्रह को देखकर युवक ने अपनी
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