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खोली, मकान बनाया, बच्चों को पढ़ाया; पर आचार्य कह रहे हैं तुमने ये सब अज्ञान के काम किये, इसलिये आज तक दुःखी व अशान्त बने हुये हो। अब तो इस मोह को, राग को छोड़कर वैराग्य को जीवन में धारण करो, जो आत्मकल्याण का कारण है।
भैया! बताओ कि अपने आपको जगत में सब पदार्थों से निराला मान लेने में क्या बिगाड़ हो जायेगा? हे जगत के प्राणी ! तू अपने आपको जगत में सब पदार्थों से निराला मान ले तो तेरे समस्त दुःख समाप्त हो जायेंगे नहीं तो तू जगजाल में ही फँसा रहेगा। तू अपने को निर्मल देख। अपने में ज्ञान उत्पन्न करे तो तुझे जीवन भर सुख प्राप्त होगा और यदि तू अपने ज्ञान स्वरूप को न संभाल सका, अपने आपको निर्मल न समझ सका, तो तू जगजाल में ही फँसा रहेगा। ___ कोई किसी से बंधा है क्या? अरे! कोई किसी से बंधा हुआ नहीं है। केवल खुद ही कल्पनायें करके विकल्प बना लिया है। विकल्प बन जाने से अपने शुद्ध स्वरूप को न समझ पाने के कारण मोह हो गया है और मोह में आकर ही पर से बंध गया है।
सुकौशल राजकुमार अपनी कुमार अवस्था में विरक्त हो गये। वह घर छोड़कर चल दिये। देखो, राजकुमार की अवस्था छोटी थी। अपनी माँ से पत्नी से व साम्राज्य-सुख से विलग हो गये थे। मंत्री-जनों ने उन्हें बहुत समझाया, अन्य लोगों ने भी बहुत समझाया, पर वे न माने। उन्हें ज्ञान हो गया था, वे अपनी आत्मा में ही लीन होना चाहते थे। तब फिर दूसरों का असर उनके ऊपर किस प्रकार से हो सकता था ? मंत्रियों ने राजकुमार को बहुत समझाया कि आपकी पत्नी के गर्भ है, बच्चा तो हो जाने दो, फिर बाद में चले जाना। बेटा! उस बच्चे को राजतिलक दिये जाओ। दुनियाँ को यह बता जाओ कि मैं अपने बच्चे को राजतिलक दे रहा हूँ। इसलिये, हे महाराज! अभी इतनी जल्दी मत जाओ। भले ही दो-तीन माह बाद चले जाना। राजकुमार सुकौशल कहते हैं कि अच्छा गर्भ में जो सन्तान है, उसे मैं तिलक किये देता हूँ। जो गर्भ में सन्तान है, उसे मै राजा बनाये देता हूँ। ऐसा कहकर सुकौशल राजकुमार विरक्त हो
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