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रख दे और भर जाये तो ले आना। थोड़ी देर बाद बेटा घड़ा वापिस ले आया। माँ ने पूछा-घड़ा भर गया? बेटा-बोला नहीं। माँ ने पूछा-क्यों? क्या नल नहीं आया? बेटे ने कहा- नल तो आया था। माँ ने पूछा- तो क्या घड़े को नल के नीचे नहीं रखा था? बेटे ने कहा-नल के नीचे भी रखा था। माँ को तो बड़ा आश्चर्य हुआ। नल भी आया, पर घड़ा भरा नहीं, तो क्या घड़ा फूटा है? बेटे ने कहा- नहीं, फूटा भी नहीं है। माँ को और भी आश्चर्य हुआ। फिर माँ ने बेटे से पूछा- बेटा! एक बात तो बताओ कि तुमने घड़ा नल के नीचे सीधा रखा था या उल्टा? बेटे ने कहा- माँ! घड़ा तो उल्टा रखा था। माँ बोली- बेटा! बस, यही भूल हो गई। घड़ा उल्टा हो तो उस पर पूरा समुद्र भी उड़ेल दो ता भी वह भरने वाला नहीं है, हमने अनादि काल से सबकुछ जाना, पर एक आत्मा को नहीं जाना इसीलिये आज तक संसार में भ्रमण करना पड़ रहा है।
बाह्य वस्तु, स्त्री, पुत्र आदि सचेतन पदार्थों तथा चांदी, सोना आदि अचेतन पदार्थों को अपना समझना कि ये मेरे हैं ऐसे ममत्व परिणाम को संकल्प कहते हैं तथा मैं सुखी, मैं दुःखी इत्यादि हर्ष-विषाद रुप परिणामों को विकल्प कहते हैं। ये संकल्प-विकल्प ही संसार भ्रमण के कारण हैं। ___यदि हम इन संकल्पों-विकल्पों में ही उलझे रहे और शरीर से भिन्न अपनी चेतन आत्मा की पहचान नहीं की, तो जब यह आत्मा इस शरीर को छोड़ कर चला जायेगा, तब यह मित्र मंडल मिलजुलकर इस शरीर को जलाकर खाक कर देगा। संसारी जनों में ख्याति आदि की भावना रखना तो दण्ड के लिये है, उसका चाव करना तो विपत्ति है। जैसे कभी स्कूल में बच्चों से कोई काम बिगड़ जाये या कोई बच्चा किसी काम को बिगाड़ दे तो मास्टर उसकी प्रशंसा करता है। मास्टर यदि यह कहे कि वाह यह तो बड़ा अच्छा काम किया है, बडी बुद्धिमानी का काम किया है। इतना सुनते ही जिस बच्चे ने काम बिगाड़ दिया है वह झट से कहेगा कि मास्टर साहब मैंने यह काम किया है। मास्टर केवल यह जानना चाहता था कि किस लड़के ने काम बिगाड़ा, इसलिये प्रशंसा करता था। पता चलने पर उस लड़के पर विपत्ति ही आती है। इसी तरह से ये जगत के जीव मास्टर बने रहते हैं, प्रशंसा! करते हैं। वाह, यह तो बड़ी बुद्धिमानी का
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