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(5) यथाख्यात- समस्त मोहनीय कर्म के उपशम से ग्यारहवें गुणस्थान में या क्षय से 12-13-14 वें गुणस्थान में जैसा आत्मा का निर्विकार स्वभाव है वैसा ही स्वभाव की प्रगटता हो जाना, यथाख्यात चारित्र है।
दस धर्म का वर्णन रत्नत्रय ग्रंथ के द्वितीय भाग में एवं बारह भावनाओं का वर्णन तृतीय भाग में किया गया है।
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