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पाँच प्रकार का चारित्र ।
समायिकछेदोपस्थपना परिहार विशुद्विसूक्ष्म
साम्पराय यथाख्यातमिति चारित्रम् ||18 || अर्थ-(1) सामायिक (2) छेदोपस्थापना (3) परिहारविशुद्वि (4) सूक्ष्मसाम्पराय और (5) यथाख्यात-यह 5 प्रकार का चारित्र है।
(1) सामायिक – समस्त सावध योग का त्याग करना सामायिक चारित्र है। यह छटे से नौवें गुणस्थान तक होता है।
(2) छेदोपस्थापना:-सामायिक चारित्र से डिगने पर प्रायश्चित के द्वारा सावध व्यापार में लगे हुये दोषों को छोड़कर पुनः संयम धारण करना छेदोपस्थापना चारित्र है।
(3) परिहार विशुद्वि:- जिस चारित्र में प्राणीहिंसा की पूर्ण निवृत्ति होने से विशिष्ट विशुद्धि पायी जाती है, उसे परिहार विशुद्वि चारित्र कहते है। यह छटवें सातवें गुणस्थान में होता है।
विशेष- जिसने अपने जन्म से 30 वर्ष की अवस्था तक सुखपूर्वक बिताया हो और फिर जिनदीक्षा लेकर 8 वर्ष तक तीर्थंकर के निकट प्रत्याख्यान नाम के नौवें पूर्व को पढ़ा हो,और (तीनों संध्याकालों को छोड़कार) दो कोस विहार करने का जिसके नियम हो, लेकिन रात्रिगमन नहीं करता, उन दुर्धर चर्या के पालन करने वाले मुनिराज को परिहार विशुद्वि चारित्र होता है। इस चारित्र के धारण करने वाले मुनिराज के शरीर से जीवों का घात नहीं होता।
(4) सूक्ष्म साम्पराय- अत्यन्त सूक्ष्म कषाय के होने से सूक्ष्म साम्पराय नाम के दसवें गुणस्थान में जो चारित्र होता है, उसे सूक्ष्म साम्पराय चारित्र कहते है।
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