________________
लिया। पूर्वविदेहक्षेत्र की प्रसिद्ध राजधानी वीतशोकपुर का राजा अशोक अत्यन्त लोभी था। वह धान्य की दाँय करते समय बैलों के मुख बँधवा दिया करता था जिससे वे अनाज न खा सकें और रसोईगृह में रसोई करने वाली स्त्रियों के स्तन बँधवा देता था ताकि उनके बच्चे दूध न पी पावें।
एक समय राजा अशोक के मुख में भयंकर रोग हो गया। उसने उस रोग की औषधि बनवाई। वह उसे पीने ही वाला था कि इतने में उसी रोग से पीड़ित एक मुनिराज आहार के लिए इसी ओर आ निकले । राजा ने पथ्य सहित वह औषधि मुनिराज को पिला दी, जिससे उनका बारह वर्ष पुराना रोग ठीक हो गया। उस पुण्य के फल से राजा अमलकण्ठपुर के राजा निष्ठसेन और रानी नन्दमती के धन्य नाम का पुत्र हुआ और समय पाकर उसने राज्यसिंहासन को सुशोभित किया। एक समय धन्य राजा भगवान् नेमिनाथ के समवसरण में धर्मोपदेश सुनने के लिये गये थे, वहाँ उन्हें वैराग्य हो गया। वे वहीं दीक्षित हो गये। पूर्वभव में जो पशुओं और बच्चों के भोजन में अन्तराय डाला था, उस पापोदय से प्रतिदिन गोचरी को जाते हुए भी उन्हें लगातार नौ माह तक आहार का लाभ नहीं हुआ। अन्तिम दिन वे सौरीपुर के निकट यमुना के किनारे ध्यानस्थ हो गये। उस दिन वहाँ का राजा वन में शिकार खेलने आया, पर दिन भर में उसे कुछ भी हाथ न लगा। नगर को लौटते हुए राजा की दृष्टि मुनिराज पर पड़ी। उन्हें देखते ही उसका क्रोध उबल पड़ा कि इसने ही आज अपशकुन किया है। प्रतिशोध की भावना से राजा ने मुनिराज के शरीर को तीक्ष्ण बाणों से बींध डाला। सैकड़ों बाणों के एकसाथ प्रहार से मुनिराज का शरीर चलनी के सदृश जर्जरित हो गया और सारे शरीर से रक्त की धाराएँ फूट पड़ीं। मुनिराज ने उपसर्ग प्रारम्भ होते ही प्रायोपगमन सन्यास ग्रहण कर लिया और चारों आराध नाओं में संलग्न होते हुए अन्तःकृत केवली होकर मोक्ष पधारे।
इस प्रकार अनेक मुनिराजों ने घोर उपसर्ग व परीषहों को समता भाव पूर्वक सहन कर अपनी आत्मा का कल्याण किया और अनन्त काल के लिये अनन्तसुख स्वरूपी मुक्ति को प्राप्त किया। सभी को इन परीषहों को समताभावपूर्वक सहन करना चाहिये।
0 249_n