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राज्य का अधिकार होगा, इस शर्त के साथ भील ने कन्या का विवाह राजा से कर दिया। राजा अपने वचनानुसार राज्य का भार उसे सौंपकर दीक्षित हो गये। राजा बनते ही चिलातपुत्र प्रजा पर नाना प्रकार के अन्याय करने लगा। जब कुमार श्रेणिक ने यह बात सुनी, तब उन्होंने अपने पौरुष से चिलातपुत्र को राज्य से बहिष्कृत करके पिता का राज्य संभाला अर्थात् वे मगध के सम्राट बन गये। चिलातपुत्र मगध से निकलकर किसी वन में जाकर बस गया और आस-पास के ग्रामों से जबरदस्ती कर वसलकर उसका मालिक बन बैठा। उसका भर्तमित्र नाम का एक मित्र था। भर्तमित्र ने अपने मामा रुद्रदत्त से उसकी कन्या सुभद्रा चिलातपुत्र के लिए माँगी। रुद्रदत्त ने उसे स्वीकार नहीं किया। तब चिलातपुत्र ने विवाह-स्नान करती हुई सुभद्रा का हरण कर लिया। जब यह बात श्रेणिक ने सुनी, तब वह सेना लेकर उसके पीछे दौड़ा। श्रेणिक से अपनी रक्षा न होते देख चिलातपुत्र ने उस कन्या को निर्दयतापूर्वक मार डाला और आप अपनी जान बचाकर वैभार पर्वत पर से भागा जा रहा था कि उसे वहाँ मुनियों का संघ दिखाई दिया। चिलातपुत्र संघाचार्य मुनिदत्त के पास आ पहुँचा और उसने उनसे दीक्षा की याचना की। तेरी आयु आठ दिन की अवशेष रही है, ऐसा कहकर आचार्य ने उसे दीक्षा दे दी। दीक्षा लेकर चिलात मुनिराज प्रायोपगमन सन्यास लेकर आत्मध्यान में लीन हो गये। सेनासहित पीछा करने वाले श्रेणिक ने जब उन्हें इस अवस्था में देखा, तब वे बहुत आश्चर्यान्वित हुए और मुनिराज को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके राजगृह लौट आये। चिलातपुत्र ने जिस कन्या को मारा था, वह मर कर व्यन्तर देवी हुई और 'इसने मुझे निर्दयतापूर्वक मारा था, इस बैर का बदला लेने हेतु वह चील का रूप ले चिलात मुनि के सिर पर बैठ गई। उसने उनकी दोनों आँखें निकाल ली और सारे शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया, जिससे उनके घावों में बड़े-बड़े कीड़े पड़ गये। इस प्रकार आठ दिन तक वह देवी उन्हें अनिर्वचनीय वेदना पहुँचाती रही, किन्तु मन, इन्द्रियों और कषायों को वश में करने वाले मुनिराज अपने ध्यान से किंचित् भी विचलित न हुए तथा उन्होंने समाधिमरणपूर्वक शरीर छोड़कर सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति की। धन्य मुनिराज ने वध परीषह पर विजय प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त कर
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