________________
मारे गये। चींटी बन गये, सड़क पर जा रहे थे, गाडियाँ ऊपर से निकल गईं। कितनी वेदना होती है? भैया! जब कोई गाड़ी तुम्हारे ऊपर से निकल जाये तो उस समय तुम्हें कितनी वेदना होगी? सोचना कभी। और चींटी के ऊपर से गाड़ी निकलती है तो उसे भी उतनी ही वेदना होती है, क्योंकि वह भी आत्मा है, वह भी दुःखी होती है। फर्क इतना है कि तुम चिल्ला पड़ते हो और वह जोर से चिल्ला नहीं पाती। आपकी गाड़ी कितनी चींटियों को रोंदते हुई चली जाती है? उनकी आवाज तुम सुन नहीं पाते और उनकी आवाज हम मुनि लोग सुन पाते हैं तो कुछ कर नहीं पाते। हम लोगों को उनकी आवाज सुनाई देती है, इसलिये हम मुनियों को कहा है कि ईर्या समिति का पालन करो। मुनिराज एकेन्द्रिय पेड़ों की भी आवाज सुनते हैं। उनकी भी करुण आवाज को सुनते हैं। इसलिये घास के ऊपर पैर नहीं रखते और तुम इसलिए घास पर तो पैर पसार कर सो जाते हो। यह नहीं सोचते कि मेरे 60 कि.ग्रा. वजन से इस एकेन्द्रिय जीव की क्या दशा हो रही होगी?
तुम्हारी अंगुली पर किसी का पैर पड़ जाये तो चिल्ला पड़ते हो, गालियाँ देते हो और कहते हो, 'अंधा है क्या? दिखता नहीं? मेरी अंगुली दबा दी' और घास पर तुम घण्टों खड़े रहते हो? तुम्हें एक बार भनक भी नहीं लगती कि मेरी 60 किलो की काया से इस जीव की क्या दशा हो रही होगी? वह मेरे वजन से तड़प रहा होगा। घास की आवाज तुम्हारे कानों में कहाँ आती है? साधु सुन लेता है और इसलिये एकेन्द्रिय को भी बचाता है। __भगवान् महावीर के सम्बन्ध में एक उदाहरण है कि उनकी माता, जब वे छोटे थे, महावीर की अंगुली पकड़ कर बगीचे में घूम रहीं थीं। उसी समय माँ ने घास पर पैर रख दिया तो महावीर चीख उठे कि माँ! देखो तुम्हारा पैर मेरी पीठ पर पड़ गया। माँ ने कहा कि यह तू क्या कह रहा है, तू चीख क्यों रहा है? तब महावीर ने कहा कि माँ! तुने मेरी पीठ पर पैर रखा। मैं पीठ पर पैर रखूगी? कभी संभव नहीं। माँ! अभी भी रखे हो पैर। कहाँ रखे हूँ? मेरा पैर तो घास पर है। पैर घास पर और दर्द पीठ पर, यह विरोधाभास नहीं है क्या ? बालक महावीर घास की तरफ इशारा करके कहते हैं-देखो न । यह आपके पैर
0 237_n