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3. एषणा समिति - श्रावक के घर विधिपूर्वक दिन में एक बार निर्दोष आहार लेना एषणा समिति है। 46 दोष तथा 32 अन्तराय रहित शुद्ध प्रासुक भोजन धर्मसाधन में सहायक होता है। ___4. आदाननिक्षेपण समिति - सावधानीपूर्वक निर्जन्तुक स्थान को देखकर वस्तु को रखना, देना तथा उठाना, शास्त्र, पिच्छि, कमण्डलु इत्यादि को पहले अच्छी तरह देखना, फिर बड़ी सावधानी से पिच्छि से परिमार्जन करके उठाना एवं रखना आदाननिक्षेपण समिति है।
5. प्रतिष्ठापन समिति - जीवरहित, जनसंचाररहित, हरित काय व त्रस जीव आदि रहित तथा बिल व छेदों से रहित, जहाँ लोक- निन्दा न करें, कोई विरोध न करे, ऐसे स्थान पर मल-मूत्रादि क्षेपण करना, प्रतिष्ठापन समिति
समिति पालन की महिमा - जैसे रणभूमि में दृढ कवच धारण करने वाला पुरुष बाणों की वर्षा में भी बाणों से नहीं भेदा जाता, उसी प्रकार समिति धारक साधु षट्कायिक जीवों से व्याप्त लोक में प्रवृत्ति करता हुआ भी पापों से लिप्त नहीं होता।
ये पाँचों समितियाँ कर्मविनाश की कारण हैं, इसलिये इन्हें साधना पथ का मूल माना गया है।
श्री सुधासागर जी महराज ने लिखा है-समितियों का पालन करने वाले मुनिराज दूसरे जीवों की पीड़ा को सुन लेते हैं। हमें यह मनुष्य पर्याय कितनी मेहनत से मिली है ? एकेन्द्रिय पर्याय को छोड़कर कितनी मुश्किल से पंचेन्द्रिय पर्याय में आये हैं? पचेन्द्रिय पर्याय तक आने की कहानी कितनी दर्दनाक है। एकेन्द्रिय में अनन्त भव व्यतीत कर तुम दो इन्द्रिय बन गये। किसी नाली के कीड़े बन गये, किसी ने फिनाइल डाली तो तड़प-तड़प कर मर गये। किसी ने चाँदी धोकर तेजाब नाली में गिरा दी, तो तुम्हारा शरीर जल गया और तुम तड़प-तड़प कर मर गए। वहाँ से जैसे-तैसे दौड़ लगाई। वहाँ से भोगों के प्रति मंद कषाय हुई, तो तीन इन्द्रिय बन गये। फिर खटमल बन गये, किसी ने खाट में मिट्टी का तेल डाला तो किसी ने लोहे के पलंग में करंट लगा दिया, सभी
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