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तो ये जड़कर्म स्वयं भाग जायेंगे मुझे छोड़कर। जिस प्रकार रस लेकर कर्मों का आस्रव व बन्ध किया है, उसी प्रकार रस ले-लेकर इन्हें तोड़ने से काम चलेगा। स्वतंत्र रूप से मैंने ही इनका निर्माण किया है और स्वतंत्र रूप से मैं ही इन्हें ललकारूँ, उनसे युद्ध करूँ, गृहस्थ में रहकर भी अपनी शक्ति को न छिपाकर (इच्छा निरोध) संवर व निर्जरा के द्वारा इन्हें काट सकता हूँ। आचार्य कहते हैं कि यदि मुक्ति चाहिये, तो कर्मों को कोसना छोड़कर संयम व तपश्चरण धारण कर संवर व निर्जरा तत्त्वों में रस ले-लेकर समस्त कर्मों को नष्ट कर दो।
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