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मंत्री को धक्का देकर कुँए में गिरा दिया। कुँए में गिरते हुए मंत्री ने कहा कि राजन् । इसमें भी कुछ भलाई होगी, जो होता है सो अच्छे के लिये होता है। कुँए में पानी थोड़ा था, अत: मंत्री उसमें खड़ा रहा।
उस वन में घूमते-फिरते भीलों का एक झुण्ड आया और उस राजा को पकड़कर अपनी देवी के सामने उसकी बलि देने के लिये ले गया। राजा को अपनी मृत्यु निकट आते देखकर बहुत दुःख हुआ।
भीलों ने देवी के मंदिर पर पहुँचकर राजा के शरीर के वस्त्र-आभूषण उतार कर बलि देने से पहले उसे स्नान कराया। स्नान कराने के बाद भीलों के पुरोहित ने जब राजा के शरीर के अंगोपांगों का निरीक्षण किया, तब उसने राजा के बाँए हाथ में एक उंगली कम देखकर भीलों से कहा कि यह पुरुष हीनांग है, अतः यह देवी को बलि देनेयोग्य नहीं है। दूसरा कोई संपूर्ण अंगोपांग वाला मनुष्य पकड़कर लावो। ___ हीनांग होने के कारण राजा मृत्यु के मुख में जाने से बच गया, तब उसे अपने मंत्री की बात सत्य प्रमाणित हुई। उसने मंत्री का आभार माना। वह वहाँ से छूट कर उस कुँए पर आया और उसने अनेक उपाय करके मंत्री को कुँए से बाहर निकाल कर अपना समाचार कह सुनाया और अपने अपराध की क्षमा मा गी। तदनन्तर मंत्री से पूछा कि कुँए में गिरते समय तुमने यह क्यों कहा कि जो कुछ होता है वह अच्छे के लिये होता है ?
मंत्री ने उत्तर दिया कि राजन्! आप अभी तक इसका रहस्य नहीं समझे? यदि आप मुझे कुँए में न गिराते तो भील मुझे भी आपके साथ पकड़ ले जाते। तब आप तो हीनांग होने के कारण देवी पर चढ़ाए जाने से छूट ही जाते, जैसे-कि अभी छूट गये हैं, परन्तु मैं तो किसी भी तरह न छूट पाता, क्योंकि मेरे शरीर में सब अंग पूरे हैं। इस कारण आपके द्वारा मुझे कुँए में गिराया जाना भी मेरे लिये वरदान बन गया।
वैसे तो मनुष्य अपनी वर्तमान परिस्थिति पर कभी संतुष्ट नहीं होता, किन्तु यदि कभी अशुभ कर्म के उदय से संकट भी आ जावे तो उसको भी अपने ही कृत्य का फल समझकर उस संकट का भी धीरता और साहस के साथ स्वागत
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