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________________ सतीत्त्व भंग करना, बलात्कार करना, व्यभिचार में लगे रहना, शराब पीना, अन्याय, अनीति, अत्याचार, बेईमानी से धनसंचय करना, पापकार्यों में द्रव्य लगाना आदि कुकृत्य करने से पापकर्म का बीज बोया जाता है, जब वह पापवृक्ष फल देने लगता है, तब अनेक तरह के क्लेश, दुःख, संताप, विपत्तियाँ जीव को मिलती हैं। शुभ कर्म के उदय होने पर सुख-सम्पत्ति का लाभ होता है। उसका स्वागत सब कोई करता है। परन्तु पापकर्म का उदय होने पर जब अनेक तरह का दुःख प्राप्त हुआ करता है, तब उसका स्वागत कोई नहीं करता। उस समय अपने परिणाम दुःखी, क्लेशित करके भविष्य के लिये और पाप-बन्ध कर लेता है। मनुष्य यदि शुभ कर्म के उदय की तरह अशुभ कर्म के उदय का भी धैर्य, शान्ति संतोष के साथ स्वागत करे और उसे अपने ही बोये हुए बीज का फल समझे, उसको आता देख दुःख/क्लेश न करे, अपने परिणामों को नीचा न गिरने दे, तो वह दुःखदायक अवसर भी उसको वरदान सिद्ध हो सकता है। एक राजा का एक बुद्धिमान मंत्री था। वह अपने राजा को विपत्ति के समय बड़ी युक्ति और शुभ सम्मति देकर धैर्य देता था, सन्मार्ग की ओर प्रेरणा देकर उसे उत्साहित किया करता था। एक दिन तलवार की तीक्ष्ण धार की परीक्षा करते समय राजा के बाएं हाथ की एक अंगुली कट गई। उसको देखकर राजा को बहुत दुःख हुआ कि मेरा हाथ बदसूरत हो गया। मैं हीन-अंग बन गया। मंत्री ने राजा को धैर्य देते हुए नम्रता के साथ कहा कि राजन्! इस उंगली कटने में भी कोई भलाई छुपी हुई है। जो होता है, सो अच्छे के लिए होता है। राजा को मंत्री की बात बहुत बुरी लगी कि मैं तो हीनांग हो गया और यह मंत्री अच्छा कह रहा है कि जो होता है वह सब अच्छे के लिए होता है। ___ एक दिन राजा अपने मंत्री को साथ लेकर जंगल में घूमने-फिरने गया। घोड़ों पर सैर करते हुए वे अपने राज्य की सीमा से बाहर एक घने वन में जा पहुँचे। वहाँ पर राजा को प्यास लगी, मंत्री ने एक कुँए पर जाकर रस्सी द्वारा कुँए से पानी खींचकर राजा को पिलाया। तदन्तर अपने लिए पानी भरने लगा। उस समय राजा को दुर्मति आई और उसने पिछली बात का बदला लेने के लिये 0 209_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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