________________
मित्र ने हँसकर कहा-तुम्हें हंस के दर्शन हो तो गये, परन्तु तुम उस हंस को पहचान नहीं पाये। मित्र ने आगे बताया कि परिश्रम ही वह सफेद हंस है जो कि तुम कुछ महीनों से कर रहे हो। परिश्रम के पंख सदा उज्जवल होते हैं। जो इस हंस को पृथ्वी पर पहचान लेता है, वह हमेशा स्वस्थ व अमीर बना रहता है। उसे कोई लूट नहीं पाता।
इसी प्रकार जो ज्ञानी आस्रव तत्त्व को समझकर इन पदार्थों में राग-द्वेष-मोह करना छोड़ देते हैं, सदा सावधान रहते हैं, उन्हें फिर कर्म रूपी चोर लूट नहीं पाते। अज्ञानी व्यक्ति तो व्यर्थ में आर्तध्यान करके कर्मों का आस्रव करते रहते
एक मुसाफिर कहीं जा रहा था। रास्ते में उसके साथ एक दुर्घटना हो जाती है। थोड़ी-बहुत चोट अवश्य लगती है, किन्तु वह बच जाता है। घर वापस आता है, सब हाल अपनी पत्नी को बताता है। कहता है-आज मैं बच गया, गाड़ी से एक्सीडेन्ट हो गया था। चोट लगी है, मरते-मरते बचा हूँ। पत्नी यह सुन रोने लगती है, विलाप करने लगती है मानो वह वास्तव में मर ही गया हो। सोचती है कि अगर यह मर जाता तो मेरी क्या दशा होती? यह सोच और जोर-जोर से रोने लगती है। रोने की आवाज सुन आसपास की औरतें भी इकट्ठी होकर आ जाती हैं और पूछती हैं कि क्या हो गया है? पत्नी कहती है कि कछ मत पछो. आज तो बहत बरा हो गया। यह सन सब औरतें रोने लगती हैं। इस दृष्टान्त का तात्पर्य यह है कि दुर्घटना हुई बात को बार-बार याद करके विलाप करने से कोई लाभ नहीं होता, किन्तु अशुभ कर्मों का आस्रव होता है। यह विलाप आस्रव का कारण है, आर्तध्यान है। अतः खोटे भावों से बचो।
कर्मों के आस्रव के 108 द्वार हैं। मन-वचन-काय का कृत-कारित–अनुमोदना से गुणा करो, फिर जो गुणनफल आये, उसका समरम्भ-समारम्भ-आरम्भ से गुणा करो और अब जो गुणनफल आये उसका चार कषायों-क्रोध-मान-माया-लोभ से गुणा कर दो। यानि 3x3 = 9, 9x 3 = 27, 27x4 = 108 ये कर्मास्रव के 108 द्वार हैं। इन्हें बन्द करने के लिये हम लोग प्रतिदिन णमोकार मंत्र की माला
0 190_n