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आत्महत्या करने का विचार तक कर लिया था। इसी बीच उसकी दृष्टि उन साधु महाराज पर पड़ गई जो एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। उनके चेहरे की आभा देखकर राजा हैरान हो गया कि इन नग्न साधु के पास कुछ भी नहीं है, लेकिन ये कितने आनन्दमय दिख रहे हैं। उसने अपने साथी से कहा कि मैं इस अनोखे भिखारी से मिलना चाहता हूँ। राजा रथ से उतरकर साधु के पास गया और उसने साधु महाराज से कहा कि मैं बाहर में आपके पास कुछ भी नहीं देख रहा हूँ , लेकिन आपकी प्रसन्न मुखाकृति को देखकर ऐसा लगता है कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। भौतिक दृष्टि से सबकुछ होने पर भी मैं मरने की सोचता हूँ | ऐसा कहकर राजा रोने लगा और उसने कहा कि क्या कोई रास्ता संभव है जिससे मैं आप-जैसी शान्ति और आनन्द को प्राप्त कर सकूँ?
मुनि महराज ने मुस्कराते हुये सहज ही मधुर शब्दों में कहा- हे राजन्! बहुत ही सीधा व सरल उपाय है। कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है, मात्र अपनी आँखों को खोलकर देखने की जरूरत है। यदि एक बार आत्मा से मिलने की प्यास का जन्म हो जाये, तो परिवर्तन हो सकता है। किन्तु, हे राजन्! तुम बड़े ही भाग्यशाली हो जो तुम्हें दिखाई पड़ गया कि तुम खाली हो, क्योंकि बहुत कम आत्माओं को अपने खालीपन का अहसास हो पाता है, उनके भीतर एक क्रान्ति-सी पैदा हो जाती है। आपके पास बाहर क्या है, इसका कुछ मूल्य नहीं। आपके भीतर क्या है, इसका भी मूल्य नहीं हैं। आपके भीतर के ज्ञान का मूल्य है। यदि यह सम्पत्ति नहीं है, तो उसे प्राप्त करने की आकाँक्षा पैदा होना चाहिए। जिनके भीतर अन्दर के जगत को देखने की आकांक्षा पैदा नहीं होती, वे संसार में सबसे बड़े दरिद्र हैं। वे दुःख में ही अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। उनके जीवन में किसी प्रकार की उपलब्धि नहीं हो पाती। उनका जीवन किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचता। वे व्यर्थ जीते हैं और व्यर्थ ही समाप्त हो जाते हैं।
बहिरात्मदृष्टि छोड़कर अपने आपको पहचानने का प्रयास करो। विचार करो कि जो अपना नहीं है, उससे परिचय जोड़ रखा है; किन्तु जो अपना है, उससे बेखबर हैं। जिन्हें एक दिन छोड़ना ही है, उसे हम अपना मान रहे हैं।
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