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"सम्यग्दर्शन का द्वितीय सोपान
तत्वों का यथार्थ श्रद्धान *
आचार्य उमास्वामी महाराज ने 'तत्त्वार्थसूत्र' के पहले अध्याय के दूसरे सूत्र में कहा है 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' अर्थात् तत्त्वों के अर्थ का यथार्थ श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
जिवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ।। जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं। 'छहढाला' में पंडित दौलतरामजी ने लिखा है -
जीव अजीव तत्त्व अरु आस्रव, बंध रु संवर जानो। निर्जर मोक्ष कहे जिन तिन को, ज्यों-का-त्यों सरधानो।
है सोई समकित व्यवहारी, अब इन रूप बखानो। तिनको सुन सामान्य विशेषै, दृढ़ प्रतीति उर आनो।। जिनेन्द्र भगवान् ने जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व जैसे कहे हैं, उसी प्रकार श्रद्धा करना, सो वह व्यवहार सम्यग्दर्शन है। सामान्य से और विशेष से उन सात तत्त्वों का स्वरूप कहेंगे, उनको सुनकर अन्तर में उसकी दृढ़ प्रतीति करना चाहिए।
__ अपने आत्मस्वरूप के जानने के लिये सात तत्त्वों का ज्ञान करना अनिवार्य है। जैनदर्शन में सात तत्त्वों का उतना ही महत्व है, जितना ज्ञान के लिये किसी भी भाषा की वर्णमाला का। ये जैनधर्म के क, ख, ग हैं। इनको ठीक-ठीक जाने बिना आत्मा की कर्म की बीमारी नहीं मिट सकती और सच्चा
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