________________
सुख प्राप्त नहीं हो सकता ।
जीव तत्त्व जो चेतना सहित होता है, उसे जीव कहते हैं । जीव तीन प्रकार के होते हैं । बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । जो शरीर और आत्मा को एक ही मानते हैं, वे तत्त्वों को नहीं जानने वाले अज्ञानी बहिरात्मा या मिथ्यादृष्टि जीव हैं। जो आत्मा के स्वरूप को जानते हैं, वे आत्मज्ञानी अन्तरात्मा या सम्यग्दृष्टि जीव हैं। जो जीव व्यक्ति से पूर्ण सर्वज्ञ, वीतराग व शुद्ध हो गये हैं, वे परमात्मा हैं।
—
एक ही आत्मा में ये तीनों अवस्थायें हो सकती हैं। जब तक आत्मा मिथ्यादृष्टि अज्ञानी है, तब तक बहिरात्मा है। जब मिथ्यात्व व अज्ञान को मेटकर वह सम्यग्दृष्टि और सम्यग्ज्ञानी होता है, तब अन्तरात्मा है । जब सारे कर्मबन्धनों का नाश कर शुद्ध हो जाता है, तब परमात्मा है।
बहिरात्मपना अर्थात् मिथ्यादृष्टि व अज्ञानपना सब तरह से त्यागने योग्य है, क्योंकि उस दशा में प्राणी अपने स्वरूप को व सच्चे सुख को न जानकर इन्द्रियों की इच्छाओं के वश पड़ा हुआ रात-दिन उन्हीं की प्राप्ति के यत्न में मग्न रहता है तथा इन्द्रियविषयों के पदार्थों के संग्रह में बड़ा भारी शोक करता है। यह बहिरात्मा जीव पंचेन्द्रिय के विषयों में लिप्त होकर क्षणभंगुर सुख को ही शाश्वत सुख मानकर आनन्द मानता है। जो देह के पोषण में लगा हुआ है, वह बहिरात्मा है। जिसे आत्मा के प्रति आस्था नहीं है और बाहर-ही-बाहर भटक रहा है, वह बहिरात्मा मिथ्यादृष्टि जीव है । उसकी आत्मा परिग्रह में अटकी रहती है।
एक बार एक किसान ने अपने पशुओं के लिये खेत में भूसा इकट्ठा किया और एक बड़ा-सा गट्ठा बनाकर सिर पर रखकर अपने घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक नदी पड़ती थी । वह बरसाती नदी थी, जिसका पाट काफी लम्बा - चौड़ा था । किसान नदी में से जा रहा था, इतने में नदी में तेजी से पानी आ गया। बीच में पहुँचते-पहुँचते उसके सीने तक पानी आ गया, लेकिन फिर भी किसान ने हिम्मत नहीं हारी। आखिर यहाँ तक नौबत आई कि उसे गठरी सहित पानी में तैरना पड़ा। पर इसी बीच पानी के तेज प्रवाह के
105 S