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इससे विरत नहीं हुए तब राजा ने तेज हथियारों से उनका सिर कटवाना शुरू किया । फिर राजा की देखा-देखी लोग भी तेज-तेज हथियार बनवाने लगे जिससे खून-खराबा बढ़ने लगा। इससे उनकी आयु भी घटने लगी, वर्ण भी घटने लगा । शनैः शनैः झूठ बोलना, चुगली खाना, स्त्रियों से दुराचार, कठोर वचन, निरर्थक प्रलाप, अनुचित लोभ, हिंसाभाव, मिथ्यादृष्टि, माता-पिता के प्रति गौरव का अभाव, श्रमणों-ब्राह्मणों और परिवार के बड़े-बूढ़ों के प्रति श्रद्धा का अभाव- इन बातों को प्रोत्साहन मिलने लगा । इनसे आयु और वर्ण का भी, उत्तरोत्तर ह्रास होने लगा।
अब एक ऐसा समय आयेगा जब सदाचार पूरी तरह लुप्त हो जायेगा और कदाचार खूब बढ़ जायेगा | माता-पिता का सम्मान न करने वालों की प्रशंसा होने लगेगी । माता, मौसी, मामी, गुरुपत्नी या बड़े लोगों की स्त्रियों का कुछ विचार न रहेगा । लोगों में एक दूसरे के प्रति बड़ा तीव्र क्रोध, प्रतिहिंसा, दुर्भावना पैदा होगी और वे तीक्ष्ण शस्त्रों से- 'यह मृग है, यह मृग है' - इस भाव से एक दूसरे के प्राण-लेवा हो जायेंगे।
ऐसी अवस्था आ जाने पर कुछ लोगों के मन में यह होगा कि पाप-कर्म करने से हम इस प्रकार के घोर जाति-विनाश को प्राप्त हुए हैं, अत: पुण्य करना चाहिए। हम लोग जीव-हिंसा से विरत हों। इससे उनकी आयु भी बढ़ने लगेगी, वर्ण भी । इससे वे और कुशल कर्म करने के लिए प्रोत्साहित होंगे, यथा चोरी से विरत रहना, व्यभिचार से विरत रहना, झूठ बोलने से विरत रहना, चुगली खाने से विरत रहना, कठोर वचन से विरत रहना, निरर्थक प्रलाप से विरत रहना, अनुचित लोभ, हिंसाभाव और मिथ्यादृष्टि को छोड़ देना और माता-पिता के प्रति गौरव का भाव तथा श्रमणों-ब्राह्मणों और परिवार के बड़े-बूढ़ों के प्रति श्रद्धा का भाव अपनाना । इससे उनकी आयु और वर्ण की भी, उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जायेगी।
उस समय जम्बु-द्वीप अत्यंत समृद्ध और संपन्न होगा। उसमें सङ्घ नाम का चक्रवर्ती राजा उत्पन्न होगा जो इस पृथ्वी को दंड और शस्त्र के बिना ही धर्म से जीत कर इस पर अधिष्ठित होगा। उस समय मेत्तेय्य नाम के भगवान, अरहंत, सम्यक संबुद्ध संसार में उत्पन्न होंगे। वे भी देव, मार, ब्रह्मा, श्रमण-ब्राह्मण सहित, देव-मनुष्य-युक्त इस लोक को स्वयं जान और साक्षात्कार कर उपदेश देंगे और अर्थपूर्ण, विशद, केवल परिपूर्ण और परिशुद्ध ब्रह्मचर्य को प्रज्ञप्त करेंगे। राजा सङ्ख भी घर-बार छोड़ कर, उनके पास प्रव्रजित हुए, अ-प्रमत्त, संयमी और आत्म-निग्रही हो, विहार करते करते. उसी जन्म में ब्रह्मचर्य की चरम उपलब्धि कर लेंगे।
इसके पश्चात भगवान ने फिर एक बार भिक्षुओं को स्वावलंबी बनने का उपदेश दिया, और यह भी समझाया कि
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