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साक्षात्कार कर, प्राप्त कर विहार करने लगते हैं वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। और सात वर्ष ही क्यों, इससे कहीं कम समय में भी प्राप्त कर सकता है।
भगवान ने निग्रोध को और भी समझाया कि तुम ऐसा मत सोचना कि मैं जो कुछ कह रहा हूं वह अपने चेलों की संख्या बढ़ाने के लिए, तुम्हें अपने उद्देश्य से डिगाने के लिए, तुमसे अपनी आजीविका छुड़वाने के लिए, तुम्हारे मताचार्यों की बुराइयों को दृढ़ करने के लिए अथवा उनकी अच्छाइयों से तुम्हें अलग करने के लिए है । मैं तो चाहता हूं कि अभी जो तुम्हारा आचार्य है, वही तुम्हारा आचार्य रहे, अभी जो तुम्हारा उद्देश्य है, वही तुम्हारा उद्देश्य रहे, अभी जो तुम्हारी आजीविका है, वही तुम्हारी आजीविका रहे, अभी जो अपने आचार्यों के साथ तुम्हारे अकुशल अथवा कुशल धर्म हैं, वे वैसे के वैसे बने रहें । मेरा धर्मोपदेश तो इसलिए है कि जो अ-नष्ट बुराइयां क्लेशों को उत्पन्न करने वाली, आवागमन की कारणभूत, सभी प्रकार की पीड़ाओं को देने वाली, दुःख-परिणाम वाली, जन्म, जरा और मृत्यु की कारण हैं, उनका नाश हो जाये जिससे कि तुम्हारे क्लेश देने वाले धर्म नष्ट हो जाएं और शुद्ध धर्म बढ़ें, और तुम प्रज्ञा की पूर्णता और विपुलता को प्राप्त हो, उसे इसी संसार में जान कर, साक्षात्कार कर, प्राप्त कर विहार करने लगो ।
३. चक्कवत्तिसुत्त
एक समय भगवान मगध के मातुला नामक स्थान पर विहार कर रहे थे। वहां पर उन्होंने भिक्षओं को संबोधित करते हुए कहा कि अपने आपको अपना द्वीप, आ पना आश्रय, बना कर विहार करो; धर्म को अपना द्वीप, अपना आश्रय, बना कर विहार करो; कोई अन्य आश्रय मत देखो।
और यह तब संभव हो पाता है जब कोई व्यक्ति स्मृति और संप्रज्ञान बनाये हुए, उद्योगशील हो, काया में कायानुपश्यना, वेदनाओं में वेदनानुपश्यना, चित्त में चित्तानुपश्यना और धर्मों में धर्मानुपश्यना करने वाला हो।
तत्पश्चात भगवान ने उनको दळहनेमि नामक चक्रवर्ती राजा का वृत्तांत सुनाया । सात रत्नों से युक्त वह इस पृथ्वी को दंड और शस्त्र के बिना ही धर्म से जीत कर इस पर राज्य करता था । समय आने पर वह अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार को राज्य-भार सौंप कर प्रव्रजित हो गया । कुमार ने भी धर्मानुसार शासन किया और चक्रवर्ती राजा हुआ। इसके बाद के छह शासक भी चक्रवर्ती राजा हुए। ये सभी धर्म की रक्षा करने वाले होकर चक्रवती-व्रत का पालन किया करते थे।
इनमें से अंतिम राजा ने बाकी सब कुछ तो किया परंतु निर्धनों को धन नहीं दिया जिससे निर्धनता बहुत बढ़ गयी और लोग एक दूसरे की वस्तुएं चुराने लगे । जब चेतावनी देने पर भी लोग
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