________________
[११]
इसके पश्चात भगवान कुसिनारा के मल्लों के शालवन उपवत्तन में गये और वहां जुड़वें शालों के बीच मंचक बिछवा कर स्मृति-संप्रज्ञान के साथ विश्राम करने लगे। उस समय अकाल होने पर भी वह जुड़वां शाल फूलों से लद रहे थे और तथागत की पूजा के लिए वे फूल उनके शरीर पर बिखरने लगे। ऐसे ही आकाश से दिव्य मंदार-पुष्प, चंदन-चूर्ण उनके शरीर पर गिरने लगे। दिव्य वाद्य बजने लगे, दिव्य संगीत होने लगे। यह देख भगवान ने आनन्द से कहा कि इनसे तथागत सत्कृत, गुरुकृत, मानित, पूजित नहीं होते । जो भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक, उपासिका धर्म के मार्ग पर आरूढ़ हो विहार करते हैं उसी से तथागत सत्कृत, गुरुकृत, मानित, पूजित होते हैं।
उस समय दसों लोकधातुओं के बहुत से देवता तथागत के दर्शनार्थ एकत्रित हुए। भगवान ने देखा कि जो देवता अ-वीतराग थे वे बुरी तरह क्रंदन कर रहे थे कि सुगत बहुत जल्दी निर्वाण को प्राप्त कर रहे हैं, परंतु जो देवता वीतराग थे वे स्मृति-संप्रज्ञान के साथ, शांत रह कर यह जान रहे थे- 'संस्कार (बने हुए पदाथ) अनित्य हैं, तो कैसे इन्हें बनाये रख सकते हैं ?'
तत्पश्चात भगवान ने आनन्द को समझाया कि श्रद्धालु कुलपुत्र के लिए ये चार स्थान दर्शनीय, वैराग्य पैदा करने वाले होते हैं- १.जहां तथागत उत्पन्न हुए, २.जहां सम्यक-संबुद्ध बने, ३.जहां धर्मचक्रप्रवर्तन किया, और ४.जहां अनुपाधिशेष निर्वाण-धातु को प्राप्त हुए। उन्होंने उसे यह भी समझाया कि तम तथागत की शरीर-पूजा की तरफ से बेपरवाह रहना और सदर्थ के लिए ही उद्योगशील रहना | जिन्हें तथागत में बहुत अनुराग होगा वे ही उनकी शरीर-पूजा करेंगे । फिर उसे यह भी समझाया कि तथागत के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके शरीर का क्या करना होता है और कौन लोग स्तूप बनाये जाने के योग्य होते हैं।
तब आनन्द विहार में जाकर विलाप करने लगा कि मैं अभी शैक्ष्य हूं और मेरे शास्ता का परिनिर्वाण हो रहा है। भगवान ने उसे बुलवा कर कहा कि तुम शोक मत करो। मैंने तो पहले ही कह रखा है कि सभी प्रियों से पार्थक्य होने वाला है । जो कुछ उत्पन्न हुआ है, संस्कृत है वह नष्ट होने वाला है। ऐसा नहीं हो सकता कि वह नष्ट न हो । तूने लंबे समय तक तन, मन, वचन से अपरिमित मैत्री के साथ तथागत की सेवा की है। तूने पुण्य कमाया है | तू निर्वाण-साधन में लग, शीघ्र ही अनाम्नव हो जा । फिर उन्होंने आनन्द के चार अद्भुत गुणों का बखान भी किया ।
आनन्द ने भगवान से कहा कि इस छोटे से नगले में परिनिर्वाण को मत प्राप्त हों । चम्पा, राजगह आदि किसी महानगर में परिनिर्वाण-लाभ करें। वहां बहुत से लोग तथागत के भक्त हैं। इस पर भगवान ने उसे बतलाया कि यही कुसिनारा पूर्वकाल में महासुदस्सन नाम के चक्रवर्ती राजा की कुसावती नाम की राजधानी थी जो दूर दूर तक फैली हुई, जनाकीर्ण, समृद्ध और वैभव-संपन्न थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org