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तत्पश्चात वेसाली पहुँच भगवान ने भिक्षुओं से कहा कि 'स्मृति' और 'संप्रज्ञान' के साथ विहार करो, यही हमारा अनुशासन है । फिर यह भी समझाया कि 'स्मृतिमान' कैसे होते हैं और ‘संप्रज्ञानी' कैसे ? जब कोई व्यक्ति राग और द्वेष को दूर करने के लिए जागरूक रह, संप्रज्ञान जगाये हुए, उद्योगशील हो काया में कायानुपश्यना, वेदनाओं में वेदनानुपश्यना, चित्त में चित्तानुपश्यना और धर्मों में धर्मानुपश्यना करता है तब वह 'स्मृतिमान' होता है; और जब वह चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते शरीर की हर अवस्था में किसी भी प्रकार की शारीरिक क्रिया करते हुए अपने बारे में संपूर्ण जानकारी बनाये रखता है तब वह 'संप्रज्ञानी' होता है ।
वेसाली में भगवान ने भिक्षु संघ के साथ अम्बपाली गणिका के यहां भोजन पाया और उसके द्वारा भिक्षु संघ को दान में दिये गये उसके उपवन को स्वीकार किया । फिर वहां से चल कर वेळुवगाम पहुँचे जहां वर्षावास किया । इस काल में उन्हें भयानक बीमारी लग गयी और मरणान्तक पीड़ा होने लगी परंतु उन्होंने उसे स्मृति और संप्रज्ञान के साथ, बिना दुःख मानते हुए, सहन कर लिया ।
भगवान के स्वस्थ होते ही आनन्द ने भगवान से कहा कि आपकी बीमारी के समय मुझे कुछ नहीं सूझता था, केवल यह विश्वास था कि आप तब तक परिनिर्वाण प्राप्त नहीं करेंगे जब तक भिक्षु संघ को कुछ कह न लेंगे। यह सुन कर भगवान बोले कि मैंने सब तरह से खुलासा करके धर्म दर्शा दिया है | मेरी कोई आचार्य - मुष्टि नहीं है । ऐसा है कि मैं भिक्षु संघ को धारण करता हूं अथवा यह मेरे उद्देश्य से है । अतः बिना किसी दूसरे का सहारा ढूंढे अपना द्वीप, अपना सहारा स्वयं बन कर विहार करो। धर्म को अपना द्वीप बना, धर्म के सहारे विहार करो। और यह तब होता है जब कोई व्यक्ति स्मृतिमान, संप्रज्ञानी, उद्योगशील हो काया, वेदनाओं, चित्त तथा धर्मों की अनुपश्यना करने लगता है ।
तत्पश्चात भगवान ने वेसाली के चापाल चैत्य में जाकर यह घोषणा की कि तब से तीन माह बाद तथागत परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे। इसके साथ ही उन्होंने स्मृति और संप्रज्ञान के साथ अपने आयु संस्कार को छोड़ दिया । उस समय बड़ा भीषण, लोमहर्षक भूचाल आया और देव-दुन्दुभियां बज उठीं | आनन्द के पूछने पर भगवान ने उसे उन आठ प्रत्ययों के बारे में बतलाया जिनकी वजह से ऐसे बड़े भूचाल आते हैं ।
तदुपरांत उन्होंने आठ प्रकार की परिषदों, आठ प्रकार के अभिभू-आयतनों तथा आठ विमोक्षों के बारे में भी आनन्द को समझाया । उन्होंने कहा कि आठवां विमोक्ष वह होता है जब कोई व्यक्ति
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