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ज्यों था त्यों ठहराया
बीमारी का कारण क्या? लेकिन जब तुम स्वस्थ होते हो, तब कभी गए चिकित्सक के पास पूछने--कि मेरे स्वास्थ्य का कारण क्या? क्यों? नहीं; स्वास्थ्य का कोई कारण नहीं है। स्वास्थ्य बड़ा प्यार शब्द है। इसका अर्थ है--स्वयं में स्थित हो जाना। स्वयं में ठहर गए। ज्यूं था त्यूं ठहराया! इसके पार कुछ भी नहीं है; कोई मंजिल नहीं है। मुहब्बत की कोई मंजिल नहीं है मुहब्बत मौज है साहिल नहीं है। जो पूछे कि मुहब्बत की मंजिल क्या है, उसने मुहब्बत को समझा ही नहीं। और ध्यान परमात्मा से प्रेम का नाम है। ध्यान अर्थात प्रेम का अंतिम शिखर। किसी व्यक्ति से प्रेम हो जाए--तो प्रेम। और इस विराट अस्तित्व से प्रेम हो जाए--तो ध्यान। चाहे उसे प्रार्थना कहो। चाहे उसे पूजा कहो। चाहे उसे प्रेम कहो। चाहे उसे ध्यान कहो। शब्दों का ही भेद है। प्रेम में अहंकार खो जाता है। दो व्यक्तियों में भी प्रेम हो जाए, तो उनके बीच कोई अहंकार का टकराव नहीं रह जाता। और जब व्यक्ति का अनंत से प्रेम होता है, समस्त से प्रेम होता है, समग्र से, तो फिर कहां अहंकार! जैसे बूंद खो जाती है सागर में ऐसा व्यक्ति खो जाता
मुहब्बत की कोई मंजिल नहीं है मुहब्बत मौज है साहिल नहीं है। तुम पूछते हो, ध्यान क्यों? तुम ध्यान का अर्थ ही न समझे। ध्यान कोई वस्तु नहीं है। ध्यान तुम्हारा स्वास्थ्य है--ध्यान कोई बीमारी नहीं है। कोई भी बहाना हो...ये सब बहाने हैं--ध्यान, प्रार्थना, पूजा, अर्चना--सब बहाने हैं--निमित्त। डूबना है। इबकी मारनी है। और ऐसी कि फिर लौटने की कोई जगह बाकी न रह जाए। डुबकी ऐसी कि डूबने वाला तिरोहित ही हो जाए। रामकृष्ण कहते थे: समुद्र के तट पर मेला लगा था। किनारे पर खड़े लोगों में यह विवाद हो गया...। बड़े पंडित, बड़े पुरोहित, बड़े ज्ञानी मेले में इकट्ठे थे। अजीब है दुनिया! मेले के झमेले में पंडित-पुरोहित, साधु-संत, किसलिए पहुंच जाते हैं? कुंभ का मेला देखा! साधुओं की कतारें चली आती हैं। संतों के अखाड़े! पहली तो बात--संतों का अखाड़ा? पहलवानों का अखाड़ा हो, तो समझ में आता है। संतों का अखाड़ा! जैसे कुछ मारकाट होनी है। और मारकाट हो भी जाती है। अखाड़े अखाड़े से जूझ जाते हैं। इसी बात पर जूझ जाते हैं कि कौन पहले स्नान करे! भाले उठ जाते हैं। ये लोग इकट्ठे हो रहे हैं, ये साधु-संत नहीं हैं; नहीं तो साधु-संत को मेले और झमेले से क्या लेना! वे तो जहां हैं, वहीं परमात्मा है। वह कुंभ का मेला जाएगा। किसलिए? किस कारण? । लेकिन मेले में पाखंडी, धोखेबाज, थोथे लोगों की भीड़ हो जाती है। उस मेले में भी रही होगी। रामकृष्ण कहते कि उनमें बड़ा विवाद छिड़ा पंडितों में, कि सागर की गहराई कितनी
है।
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