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4.37. कुत्ता - कामी जनों को कुत्ते की उपमा देते हुए ज्ञानार्णव में कहा है कि जिस प्रकार निकृष्ट कुत्ते हड्डी के चबाने से अपने ही तालु से निकले हुए रुधिर को पीकर सुख का अनुभव करते हैं उसी प्रकार कामी जन अपने शरीर की विडम्बना करते हुए मैथुन से उत्पन्न हुए सुख का अनुभव करते हैं। 4.38. कीड़े - ज्ञानार्णव में स्त्रियों के अपवित्र अंगों की संगति करने वाले कामी पुरुषों को अपवित्र मल में विचरण करने वाले घृणास्पद क्षुद्र कीड़ों की उपमा दी गई है।150 4.39. घी- ज्ञानार्णव में विषय सेवन को घी की उपमा देते हुए कहा गया है कि जिस तरह घी डालने से अग्नि कभी शांत नहीं होती बल्कि अधिक प्रज्ज्वलित ही होती है उसी प्रकार विषय सेवन से काम की बाधा शांत नहीं होती, बल्कि वह उत्तरोत्तर वृद्धिंगत् ही होती है। 100 4.40. पागल - जिस प्रकार पागल मनुष्य मिट्टी के ढेले में भी सुवर्ण को देखता है उसी प्रकार राग में अंधे हुए मन वाला विषयानुराग से अविवेकी बना प्राणी मैथुन सेवन में सुख मानता है। 4.41. अपथ्य आहार - जिस प्रकार रोगी मनुष्य पथ्य (हितकर) समझकर अपथ्यों का अहितकर, रोगवर्द्धक भोजनादि का सेवन करता है उसी प्रकार कामी पुरुष सुख की इच्छा से निर्लज्ज होकर स्त्रियों के अंगों का सेवन करता है। 102 4.42. कुष्ठ रोग - जिस प्रकार शरीर के ताप से पीड़ित कुष्ठरोगी खुजलाने को सुखकारक मानता है उसी प्रकार तीव्र काम रूप ताप से पीड़ित मनुष्य मैथुन को सुखकारक मानता है। परंतु यह उसका भ्रम है क्योंकि जिस प्रकार खुजलाने से अंत में कोढ़ी को अधिक ही कष्ट होता है उसी प्रकार काम सेवन से भी अंत में कष्ट ही अधिक होता है। 63
इस प्रकार अब्रह्मचर्य के स्वरूप व इसके परिणामों को व्यापक रूप से समझने के लिए ये उपमाएं बहुत ही सहायक सिद्ध होती हैं। इन मर्मस्पर्शी उपमाओं से साधक को मूल विषय के अलावा अन्य विषयों का भी ज्ञान हो जाता है। 5.0 निष्कर्ष
भगवान महावीर समग्र ज्ञान के पक्षधर थे। उन्होंने प्रत्येक ज्ञेय को सभी दृष्टियों से देखने का सूत्र दिया। ब्रह्मचर्य के संदर्भ में भी सर्वप्रथम अब्रह्मचर्य को जानना और त्यागना बताया- अबंभं परियाणामि, बंभ उवसम्पज्जामि। जैन आगमों में अब्रह्मचर्य का भी विस्तृत विश्लेषण मिलता है। इसमें उसके पर्यायवाची, कारक तत्त्व एवं दुष्परिणामों का प्रतिपादन किया गया है। पर्यायवाची शब्दों में मैथुन, काम-गुण, काम-भोग, आदि के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से विचार किया गया है। विभिन्न ग्रंथों में इसके साथ ही 38 पर्यायवाची नामों का उल्लेख प्राप्त होता