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हैं। जैसे - जिस प्रकार पंक जल (दलदल में फंसा हुआ हाथी स्थल को देखता हुआ भी किनारे तक नहीं पहुंच पाता। उसी प्रकार कामगुणों में आसक्त बने हुए व्यक्ति धर्म को जानते हुए भी उसका अनुसरण नहीं कर पाते तथा जिस प्रकार हथिनी के पथ में आकृष्ट काम गुणों में गृद्ध बना हुआ रागातुर हाथी विनाश को प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार जो मनोज्ञ भावों में तीव्र आसक्ति रखता है, वह अकाल में ही विनष्ट हो जाता है। ज्ञानार्णव में कामवासना की उपमा मदोन्मत्त हाथी से करते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार मदोन्मत्त हाथी जंगल में वृक्षों को उखाड़ देता है उसी प्रकार निरंकुश कामासक्ति धर्मरूप वृक्षों को उखाड़ देती हैं। 4.30
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वैतरणी नदी वैतरणी नदी नरक गति में मानी जाती है। अति तीव्र प्रवाह और विषम तटबंध के कारण यह दुस्तर मानी गई है। सूत्रकृतांग सूत्र में स्त्रियों को वैतरणी से उपमित करते हुए दुस्तर कहा गया है।
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4.31. चोर उत्तराध्ययन सूत्र में विषयों के प्रति राग द्वेषात्मक प्रवृत्ति वाली इंद्रियों को चोर से उपमित किया गया है। क्योंकि ये मनुष्य का धर्म रूपी सर्वस्व छीन लेती है। 4.32. पिशाच - भगवती आराधना में काम विषय को पिशाच की उपमा दी गई है। सूत्रकार कहते हैं कि जिस प्रकार पिशाच के द्वारा पकड़ा गया मनुष्य अपने हित-अहित को नहीं समझता, उसी प्रकार काम रूपी पिशाच के द्वारा पकड़ा गया मनुष्य अपने हित अहित को नहीं समझ सकता।2 दूसरी तरफ कहा गया है कि जैसे जल में डूबा हुआ और प्रवाह में बहता मनुष्य चेतना रहित होता है। वैसे ही जिसका चित्त विषय रूपी पिशाच के द्वारा गृहीत है वह मनुष्य सब
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कार्यों में प्रवीण होते हुए भी मंद होता है।' 4.33. रेशम का कीड़ा - भगवती आराधना में स्त्री रूपी जाल में फंसे व्यक्ति को रेशम के कीड़े से उपमित करते हुए कहा गया है कि जैसे रेशम का कीड़ा अपने ही मुख में से तार निकालकर उससे अपने को बांधता है, वैसे ही दुर्बुद्धि मनुष्य विषयों के लिए स्त्री रूपी जाल के द्वारा नित्य अपने को बांधता है, जिसका छूटना अशक्य है।' 4.34. सछिद्र बर्तन ज्ञानार्णव के अनुसार जिस प्रकार सछिद्र बर्तन में भरा गया पानी क्षण भर भी स्थित नहीं रहता है, उसी प्रकार काम बाण से विद्ध हुए मन में अमृत के समान सुखप्रद विवेक भी क्षण भर के लिए स्थित नहीं रहता है।
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4.35. मालती लता - ज्ञानार्णव में स्त्रियों के अंगों को मालती लता से उपमित किया गया है। ये कोमल होते हैं किन्तु मर्म स्थानों को विदीर्ण कर देते हैं।'
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4. 36. कौआ - ज्ञानार्णव में कामी पुरुषों को कौए से उपमित किया गया है। सूत्रकार कहते हैं जिस प्रकार कौआ कीड़ों के समूहों से व्याप्त हड्डी में अनुराग करता है उसी प्रकार कामी स्त्री के गुप्तांगों में अनुराग करता है।'
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