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रत्नकरण्ड श्रावकाचार में लिखा गया है कि जो पाप समझकर न तो पर-स्त्री के पास स्वयं जाता है और न दूसरों को भेजता है उसे परदार निवृत्ति या स्वदारसंतोष व्रत कहते हैं। 107
सर्वार्थसिद्धि में लिखा है कि गृहीत या अगृहीत पर स्त्री के साथ रति न करना गृहस्थ का चौथा अणुव्रत है। 100
पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय में लिखा है कि जो मोह वश अपनी स्त्री को छोड़ने में असमर्थ है, उन्हें भी शेष सब स्त्रियों का सेवन नहीं करना चाहिए। 109
सोमदेव विरचित उपासकाध्ययन में लिखा है, पत्नी और वेश्या को छोड़ कर अन्य सब स्त्रियों को माता, बहन और पुत्री समझना गृहस्थ का ब्रह्मचर्य है। प्रशम रति प्रकरण में भी यही बात कही गई है। 111
कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार जो मन, वचन और काय से परस्त्री को माता, बहन और पुत्री के समान मानता है वह स्थूल ब्रह्मचर्याणुव्रती है। अमित गति ने भी यही स्वरूप बतलाया
वसुनन्दि श्रावकाचार में लिखा है, पर्व के दिन स्त्री भोग और अनंगक्रीड़ा को जो सदा के लिए छोड़ देता है वह स्थूल ब्रह्मचारी है।
सागारधर्मामृत के अनुसार जो पाप के भय से मन, वचन और काय से पर स्त्री और वेश्या के पास न स्वयं जाता है और न दूसरों को भेजता है वह स्वदार संतोषी है।
ब्रह्मचर्य अणुव्रत के लिए 'स्वदार संतोष व्रत' और 'परदारनिवृत्ति' दो नामों का प्रयोग किया गया है। इसकी मीमांसा में विद्वानों का कुछ मतभेद भी रहा है। स्वदार संतोष पर तो सब एक मत हैं किन्तु कुछ विद्वान जैसे सोमदेव और उमास्वाति वेश्या, कुमारिका, विधवा को परदार नहीं मानते। क्योंकि वे दूसरों द्वारा गृहीत नहीं हैं। जबकि शेष विद्वान दोनों ही नामों को समानार्थक ही मानते हैं।
इसके समाधान में लाटी संहिता में स्व-स्त्री और पर-स्त्री के स्वरूप का विस्तृत विवेचन किया गया है। उसके रचयिता के अनुसार धर्म-पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्री का सेवन चतुर्थ अणुव्रत के अन्तर्गत वर्जनीय है। पत्नी की व्याख्या उन्होंने इस प्रकार की है -
पत्नी - देव, शास्त्र और गुरु को नमस्कार करके कुटुम्बियों की साक्षीपूर्वक जिसका पाणिग्रहण किया जाता है वह पत्नी कहलाती है। पत्नी के दो प्रकार होते हैं
(1) धर्म पत्नी - स्वजाति की पाणिगृहीता पत्नी धर्म पत्नी कहलाती है। (2) भोग पत्नी- अन्य जाति की पाणिगृहीता पत्नी भोग पत्नी कहलाती है।
इन दोनों के अतिरिक्त जो सामान्य स्त्रियां होती हैं जिनका पाणिग्रहण नहीं किया जाता उन्हें 'चेटिका' कहा जाता है। चेटिका और भोग पत्नी दोनों केवल भोग के लिए होती हैं अत: इन
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