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(iii) घ्राणेन्द्रिय संयम - रसनेन्द्रिय के विषयों के साथ घ्राणेन्द्रिय के विषय रहते हैं। फिर भी पृथक रूप से भी केवल सुगन्ध के लिए अनेक द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। कुछ गंध विशेष का मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए जैन आगमों में ब्रह्मचर्य साधक के लिए इत्र, चंदन, केसर आदि सुगन्धित पदार्थों का उबटन, विलेपन, आदि का प्रयोग निषिद्ध हैं। इन पदार्थों से कामुकता की वृद्धि का समर्थन आयुर्वेद शास्त्र भी करता है। (iv) रसनेन्द्रिय संयम - स्वास्थ्य शास्त्र के अनुसार व्यक्ति की कामुकता एवं भोजन का गहरा संबंध है। मनुष्य द्वारा किया गया भोजन रस, रक्त, मांस आदि सात धातुओं में क्रमशः परिवर्तित होता है। इसकी अन्तिम परिणति वीर्य होती है।
आहार के मुख्यतः दो कार्य होते हैं - (i) शरीर को धारण करने की शक्ति देना तथा (ii) काम संज्ञा को उत्पन्न करना । अतः जैन आगमों में आहार का सर्वथा निषेध नहीं है। वहाँ आहार-विवेक का निर्देश है ताकि धर्म का आधारभूत शरीर भी पलता रहे और काम संज्ञा का उद्दीपन भी न हो। जैन आगमों में ब्रह्मचारी के लिए आहार संबंधी निर्देशों को निष्कर्षतः दो रूप में देखा जा सकता हैं - (अ) प्रणीत रस का विवेक - दूध, घी आदि के सर्वथा वर्जन से शरीर में शुष्कता एवं निर्बलता बढ़ जाती है इससे ज्ञान, ध्यान, सेवा आदि यथेष्ट प्रवृत्तियों में बाधा आती है। परन्तु इनका प्रतिदिन एवं अतिमात्रा में सेवन करने से कामोत्तेजना बढती है। इसलिए जैन आगमों में ब्रह्मचारी को यह निर्देश है कि ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए वह अति मात्रा में प्रतिदिन प्रणीत रसों का सेवन न करे। (ब) मात्रा का विवेक - अरस, अप्रणीत अर्थात् सामान्य आहार भी यदि मात्रा से अधिक लिया जाता है तो यह ब्रह्मचर्य की दृष्टि से उचित नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक क्षमता भिन्न-भिन्न होती है ऐसी स्थिति में उचित मात्रा का निर्धारण करना कठिन होता है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार आहार की मात्रा उतनी ही पर्याप्त है जितनी व्यक्ति आसानी से पचा सके। आहार करने के बाद पेट में तनाव, भारीपन का अनुभव हो रहा हो तो समझना चाहिए आहार की मात्रा ज्यादा है और आहार के बाद तन-मन में हल्कापन व प्रसन्नता हो तो समझें मात्रा अधिक नहीं है। आगम मनीषियों ने ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए आहार की मात्रा के विवेक पर बहुत बल दिया है।
ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए आहार की अतिमात्रा का वर्जन शरीर शास्त्रीय कारणों से भी किया गया लगता है। मनुष्य की बड़ी आँत वीर्याशय के पास से गुजरती है। जब बड़ी आंत में अतिशय मल और वायु जमा हो जाती है तो वीर्याशय पर दबाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप बिना निमित्त के भी कामोत्तेजना एवं वीर्य स्खलन हो सकता है।
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