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की पाट पर बैठकर धर्मोपदेश देना शोभास्पद रहेगा। इसलिए आज इन शास्त्र की बातों को बाजु में रखकर शस्त्र से सज्ज होने की जरूरत है।"
सभा में एकाग्र मन से प्रवचन सुन रहे आमराजा भी वृद्ध धार श्रावक के आक्रोश भरे वचनों को सुनकर स्तब्ध बने ।
सुरिवर का ऐसा अपमान सहन न होने के कारण आमराजा खड़े हो गये। उस समय परिस्थिति को पहचानने वाले विचक्षण ऐसे आचार्य भगवंत इशारे के द्वारा महाराज को शांत रहने के लिए कहते हैं। धार श्रावक गिरनार गिरिवर की स्थिति का ब्यान करते हुए वचनों के तीरों से सूरिजी के हृदय को तार तार कर रहा था। तीर्थ यात्रा में आनेवाली मुश्किलों का नाश करने के लिए वह समस्त समाज और सूरिवर को उत्साहित करता है। अपने हृदय में बसे हुए तीर्थ के प्रति लगाव की एक चिनगारी वह सबके दिल में जलाना चाहता था । पाँच-पाँच पुत्रों की मृत्यु के बाद भी किंचित् मात्र दुःख बताये बगैर मात्र और मात्र तीर्थरक्षा के लिए, हृदय को चीर दे ऐसी धारदार वाणी से सबके दिल में अलग ही असर हुई थी ।
जिनके श्वासोश्वास में शासन बसा है, ऐसे महाशक्तिशाली आचार्य भगवंत और जिनके उपर इसका प्रभाव हुआ, वह आमराजा, श्री गिरनार की विकट स्थिति का वर्णन सुनकर तिलमिला उठते हैं। उनके अंतर के तार तार झनझना उठते हैं। सूरिवर और आमराजा महासंघ यात्रा सहित गिरनार की तरफ प्रयाण करते हैं। प्रचंड सत्व के स्वामी आमराजा भी भीष्मप्रतिज्ञा करते हैं कि, "जब तक गिरनार मंडन नेमिजिन की दर्शन-पूजा नहीं होगी तब तक अन्नजल का त्याग ! " कहाँ तो कान्यकुब्ज और कहाँ गढ गिरनार ? गाँव-गाँव अनुकंपादान, साधर्मिक भक्ति, जीवदया आदि अनेक कार्यों के साथ शासन प्रभावना पूर्वक संघ आगे बढ़ रहा था ।
कई दिन बीत गए । राजघरानें में जन्मे हुए आमराजा को कभी भूख प्यास की वेदना सहन करने का अवसर आया नहीं था । आज कुदरत उनकी परीक्षा ले रही थी । यह महासंघ स्तंभनतीर्थ पहुँचा । वहाँ मन के मजबूत ऐसे आमराजा के शरीर की शक्ति क्षीण होती गई। आमराजा जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे थे। सूरिवर और सब साथी चिंतातुर हुए लेकिन आमराजा की प्रतिज्ञा तो अखंड थी ।
प्राण जाये पर प्रतिज्ञा में कुछ भी फेरफार न करने का उनका दृढ निश्चय था । समस्त स्तंभनतीर्थ के भावुक संघ यात्री और सूरिजी चिंतातुर बने । अंत में महाशक्तिशाली ऐसे सूरिवरजी ने श्री गिरनार महातीर्थ की अधिष्ठायिका, श्री नेमिनाथ प्रभु
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