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गिरनार गिरिवर के पावन आंगन में आज खून के लाल रंग से रंगोली बन रही थी। श्री जिनेश्वर परमात्मा के शासन के प्रति अत्यंत भक्तिवाले सुश्रावक धार के एक के बाद एक पुत्र पूरे जोश के साथ विरोधी पक्ष का सामना कर रहे थे। एक..... दो..... तीन.... चार..... पाँच.... सुश्रावक धार के एक के बाद एक पाँचों पुत्र मरण को प्राप्त हुए । विरोधी पक्ष ने उन सबका सिर धड से अलग कर दिया । तीर्थरक्षा के तीव्र प्रेम को अंतिम श्वास तक हृदय में बसाकर मौत को गले लगानेवाले वे पाचों पुत्र उसी क्षेत्र के अधिपति बनने का परम सौभाग्य प्राप्त करते हैं। क्रमशः (१) कालमेघ, (२) मेघनाद (३) भैरव (४) एकपद (५) त्रैलोक्यपद नामक क्षेत्राधिपति बने । जिनशासन के इतिहास के पन्नों पर उनका बलिदान सुवर्ण अक्षरों में लिखा गया है।
तीर्थभक्ति के निमित्त पाँचों पुत्र शहीद होने के बावजूद भी इसमें उनकी हार नहीं थी। उन पाँचों पुत्रों ने गिरिवर के पाँच-पाँच पहाड़ पर विजय प्राप्त करके क्षेत्र का अधिपति कहलाने का ताज सिर पर पहन लिया था।
सुश्रावक धार रणभूमि बनी हुई तीर्थभूमि पर गिरी हुई खून से लथपथ अपने पाँचों युवान पुत्रों की लाशों को देखकर पुत्रों की मर्दानगी का गौरव प्राप्त कर रहे थे। अभी तक उनके मन की तमन्ना अधुरी ही थी, आज उनके पीछे हटे हुए कदमों में लंबी कूद लगाकर मंजिल पाने का निश्चय था । मन के महल में आनेवाले कल के मीठे मनोहर सपने सजाकर वह तीर्थरक्षा के शिखरों को जीतने के लिए निकलते हैं।
जिनशासन के चरणों में पाँच-पाँच पुत्रों के जीवनदान करने के बावजूद भी सुश्रावक धार के हृदय में कोई दुःख नहीं था। गिरनार तीर्थ को कब्जे में लेने की इच्छा दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी। पाँच-पाँच पुत्र रत्नों के शहीद होने के बाद धार भटकते हुए कान्यकुब्ज नगर में पहुंचता है। अनजान जगह में गली-गली में घूमते हुए जैन उपाश्रय में आ पहुचा । पूछताछ करके आचार्य भगवंत का जहा पर व्याख्यान चल रहा था, वहा सभा के बीच में से निकलकर आचार्य बप्पभट्टसूरि महाराज साहेबजी के पास आकर बैठ जाता है ।
__आचार्य भगवंत की अमृतवाणी को थोडी देर सुनने के बाद धार श्रावक बीच में खड़े होकर सकल संघ के सामने आचार्य भगवंत को कहते है, "गिरनार महातीर्थ का कब्जा आज भयजनक बन गया है । दिगंबर पंथ के लोग हक जमाकर बैठे हुए हैं, और श्वेताम्बर पंथ को पाखंडी समझकर गिरिवर पर यात्रा करने की मनाई कर रहे हैं। ऐसे समय मे पाट पर बैठकर धर्म की बातें करने का कोई मतलब नहीं है। पहले इस गिरनार महातीर्थ को कब्जे में लेकर उद्धार करो, फिर इस व्याख्यान