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________________ महातीर्थ की तलहटी में प्रवेश करता है और वहाँ पर ही सबके हृदय थम गये । गिरनार की तलहटी में पहले ही एक संघ छावणी में पड़ाव डालकर बैठा था । श्वेताम्बर पक्ष के कद्र विरोधी दिगंबर पक्ष के अनुयायी ऐसे उन लोगों ने श्वेताम्बर पक्ष के उस संघ को पर्वत पर चढ़ने से रोका । गिरनार पर अपना हक जमाने के दुष्ट विचार के साथ वह पक्ष शस्त्रों सहित युद्ध करने के लिए सज्ज बैठा था । सुश्रावक धार का संघ गिरिवर की यात्रा करने के लिए तत्पर था, लेकिन जैसे ही कदम उठाया सामने पक्ष से आवाज आई, "खबरदार ! इस गिरिवर पर हमारा संपूर्ण हक है। यहाँ यात्रा करने का आपको कोई अधिकार नहीं" । विरोधी पक्ष की आवाज सुनकर संघ के यात्रिक वही स्तब्ध खडे रहे। ऐसे चपचाप खडे रहेंगे. तो सामनेवाला पक्ष ज्यादा बलवान हो जायेगा, ऐसा विचार कर संघ के यात्रियों ने सामनेवाले पक्ष का विरोध किया। दोनों पक्षों के बीच शब्दों की आतिशबाजी चली। कोई ठोस निर्णय न होने के कारण संघ के नेताओं ने अन्याय के सामने राजा की मदद लेने का निर्णय किया । लेकिन काले मनवाले उन लोगों ने तो राजा को पहले से ही अपने पक्ष में कर लिया था। विरोधी पक्ष को राजा की पूर्ण: सहायता थी। जैसे ही श्वेताम्बर संघ महाराजा के सामने नजराना लेकर न्याय की माग करता है, उसी समय राजा के न्याय का तराजू विरोधी पक्ष की तरफ झुकता हुआ दिखाई दिया । अरे ! यह तो पानी में आग । स्वामी ही जब स्वार्थी बन जाये तो सेवक बेचारा कहाँ जाये ? सुश्रावक धार और उसके साथीदार उद्विग्न हुए । इस सवाल का हल तो लाना ही पड़ेगा । अब तो किसी भी हालत में हम हार नहीं मानेंगे । तीर्थ की संपूर्ण मालिकी होने के बावजूद तीर्थयात्रा का निषेध ! युवानों के हृदय में बसी हुई शासन के प्रति अनुराग की ज्वाला और ज्यादा प्रज्वलित हो उठी। अब तो जान की बाजी लगाकर भी तीर्थ का कब्जा ले लेंगे, ऐसा दृढ़ निश्चय करके सब मरने के लिए तैयार हुए। सबके हृदय में तीर्थभक्ति का कजज्बा उछल रहा था । युद्ध का ऐलान होते ही युवानों ने बाहें चढा लीं। तीर्थभमि आज रणभूमि बन चुकी थी। दोनों पक्षों ने गिरिवर के हक के लिए जंग छेडी थी। एक के बाद एक लाश इस तीर्थभूमि की पावन भूमि पर गिरने लगी। खून के लाल रंग से तीर्थभक्ति का इतिहास लिखा जा रहा था । विरोधीपक्ष के विराट बल के सामने सुश्रावक धार के संघ की संख्या मामुली होते हुए भी तीर्थप्रेम के कारण शत्रु से लड रहे थे । आज उनको मरने का कोई डर नहीं था । शासन के लिए शहीद होने का सपना आज वे साकार कर रहे थे।
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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