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________________ तीर्थभक्ति ऐतिहासिक प्रसंगों की परंपरा से प्रख्यात बना हुआ गढ गिरनार अनेक वादविवादों का सामना करने के लिए आज तक गौरवशाली रहा है। बहते समय के साथ गढ गिरनार के कब्जे और हक के लिए अनेक प्रसंग इतिहास के पन्ने-पन्ने पर लिखे जा चुके हैं। गिरनार महातीर्थ पर अनेक पक्ष अपना हक जमाने के लिए प्रयत्न करते थे। उस समय तीर्थभक्ति के लिए शहीद होनेवालों की यह घटना है। धामणउली नामक एक गाँव में धार नामक श्रावक रहता था । पूर्वजन्म के कोई प्रचंड पुण्यानुबंधी पुण्य के योग से धनसंपत्ति उसके कदम चूम रही थी। अनेक रिद्धि-सिद्धि का स्वामी बना हुआ धार श्रावक बहुत वैभवशाली होने के बावजूद, जिनेश्वर परमात्मा के शासन का परम भक्त था । उसके हृदय में शासन के प्रति तीव्र अनुराग के कारण उसके पाँचों पुत्रों के खुन में भी शासन प्रेम की धारा बहती थी। पहले किये हुए सत्कार्यों के फल स्वरूप मिले हुए धन वैभव के साथ-साथ उसका धर्मवैभव भी कम नहीं था । शुद्ध श्रावक के संस्कार उसके प्रत्येक श्वास में बह रहे थे। सम्यक्त्वमूल बारह व्रत धारण करके यथाशक्य चुस्त श्रावक जीवन जी रहा था । बहती नदी के निर्मल पानी की तरह उसका जीवन व्यतीत हो रहा था । उसमें एक बार श्री गिरनार की अचिन्त्य महिमा की बातें गुरुभगवंत के श्रीमुख से सुनकर उसका मन मोर की तरह नाच उठा । संघ सहित गिरनार की यात्रा करने का उसने निर्णय जाहिर किया । हवा बात फैलाती है, वैसे आसपास के गांवों में चारो ओर धार श्रावक के संघ की बात फैल गयी। गिरनार के दर्शन की इच्छा रखनेवाले अनेक भावुक आत्माओं का आगमन धामणउली गाँव में होने लगा। धामणउली गाँव की प्रजा आज आनंदित हो रही थी । गाँव की गली-गली में हरे तोरण सुशोभित हो रहे थे । धार श्रावक के पांचों पुत्रों का आनंद भी आसमान को छू रहा था । नगरवासी, स्त्री-पुरुष बालक सब आनंदित थे। शुभदिवस की मंगल घड़ियों में श्री जिनेश्वर परमात्मा के शासन के प्रति अत्यंत वफादार ऐसे सुश्रावक धार श्रेष्ठि के गिरनार महातीर्थ के संघ का शुभ प्रयाण हुआ । दानधर्म द्वारा गांव-गांव प्रभु के शासन की प्रभावना करते हुए, आनंदमय वातावरण के साथ संघ गिरनार ७७
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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