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के शासन की अधिष्ठायिका श्री अंबिकादेवी की आराधना करके देवी को साक्षात् प्रगट किया। गिरनार तीर्थ की रक्षा और आमराजा की भीष्मप्रतिज्ञा की बात बताई । शासनदेवी आचार्य भगवंत की बात सुनकर अंतर्धान होती है और पलभर में आकाशवाणी होती है।
"हे पुण्यवान् ! मैं गिरनार महातीर्थ की अधिष्ठायिका अंबिका देवी हँ, तेरे सत्व और शौर्य से मैं प्रसन्न हैं। तीर्थरक्षा की तेरी तमन्ना और तेरे शरीर की दुर्बलता को देखकर, गिरनार के श्री नेमिप्रभु की मूर्ति में लेकर आई हूँ। उसके दर्शन-पूजन से तेरी प्रतिज्ञा पूरी होगी।"
थोडी देर में श्री नेमिजिन की देदीप्यमान प्रतिमा आकाश मार्ग से धरती पर आई । प्रभु के दर्शन से, सूर्य के उदय के साथ कमल खिलता हो वैसे आम राजा के शरीर में नया जोश पैदा हुआ । स्तंभननगर की चारों दिशाओं से लोग आने लगे। सब परमात्मा की भक्ति में मग्न हो गये । आमराजा ने अत्यंत भावुक बनकर प्रभुजी की दर्शन-पूजा की। लेकिन उसके मन में प्रतिज्ञा पूर्ण होने के बारे में शंका न रह जाये, इसलिए शासनदेवी द्वारा पुनः दिव्यवाणी सुनाई देती है, "हे पुत्र ! इस प्रतिमा के दर्शन-पूजन द्वारा तूने गिरनार गिरिवर के श्री नेमिप्रभु के ही दर्शन-पूजा का लाभ प्राप्त किया है इसलिए तेरी प्रतिज्ञा पुरी हुई है। इसमें जरा भी संशय मत रखना ।
शासन देवी के दिव्यवचनों को मानकर आमराजा ने अतृप्त मन के साथ पारणा किया। उसके शरीर में नया तेज प्रकाशित हुआ। नये जोश और नये जुनून के साथ सब गिरनार गिरिवर की तरफ प्रयाण करते हैं। सूरिजी और राजा गिरनार की दिन प्रतिदिन की परिस्थिति की जानकारी लेते रहे, और सामनेवाला पक्ष ज्यादा बलवान हो रहा है, ऐसे समाचार मिले ।
आमराजा का महासंघ गिरनार गिरिवर की तलहटी में आ पहुँचा । जैसे उनका स्वागत करने के लिए इकट्ठा ना हुए हो, वैसे सामनेवाले पक्ष के ११ महाराजा, विशाल युद्धसेना, आचार्य भगवंत और श्रावक संघ आदि तलहटी में छावणी डालकर ठहरे थे । आमराजा के संघ ने गिरिवर पर चढने हेतु जैसे ही कदम बढाये, सामनेवाले पक्ष से आवाज आयी, “खबरदार ! इस तीर्थ पर हमारा अधिकार है। एक और कदम आगे बढ़ाया तो आपका मस्तक सिर से अलग कर दिया जायेगा।" आज तो आमराजा भी पूरी तैयारी के साथ युद्ध लडने को तैयार था, परंतु सूरिवर के मात्र इशारे से आमराजा, "गुरु आणाए धम्मो" सूत्र को मानकर शांत हुआ ।