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जल के लिए तड़पता हुआ चातकपक्षी मेघ के आगमन की राह देखता है, उसी तरह मांडवगढ के मार्ग की तरफ राह देखते हुए बैठे थे ।
तीर्थमाला - इन्द्रमाला के दिन उपवास हुआ। दूसरे दिन भी मध्याह्न का समय बीत गया था। सूर्य का तेज धीरे धीरे कम हो रहा था । संध्या के रंग से नीलगगन में रंगोली भरने का कार्य प्रारंभ हो चुका था। सूर्यास्त को मात्र दो घडी (४८ मिनिट) का समय शेष रहा था। उसी समय मांडवगढ की दिशा से ऊँटनीयों के पाँव की आवाज सभी के कानों तक पहुँची । सूर्य के उदय से जिस तरह सूर्यमुखी पुष्प विकसित होता है उसी तरह पेथडमंत्री ऊँटनीयों के आगमन से आनंदविभोर बन गए । मांडवगढ का मार्ग धूल से घिर चुका था । और देखने ही देखते ऊँटनीयाँ गिरनार की तलहटी में आ गयीं। तुरंत ही ऊँटनीयों के ऊपर से सुवर्ण की थैलियाँ नीचे उतारी गयी और ५६ धडी सुवर्ण तोला गया। सभी को मंत्रीश्वर को पारणा करवाने की तीव्र इच्छा थी । परन्तु सूर्यनारायण को यह मंजूर नहीं था। दो घडी शेष सूर्य ढल चुका था, जिससे दो घडी पहले चौविहार के पच्चक्खाण करनेवाले मंत्रीश्वर के चौविहार उपवास का पच्चक्खाण करने से छट्ट का तप हुआ । धीरे-धीरे सूर्य अस्त होने की तैयारी में था और संध्या का समय हो गया था।
दूसरे दिन सुबह वार्जित्रों के मंगलनाद से चतुर्विध संघ के शीतल सानिध्य में मंत्रीश्वर पेथड के छठ्ठ तप का पारणा हुआ और उसी दिन विशाल जनसभा के स्वामीवात्सल्य के लिए भोजन के समारंभ की योजना की गयी।
श्वेतांबर संप्रदाय का तेज सितारा चमक उठा ।
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