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________________ तो भी जो उसकी उपेक्षा करता है, वह भी संसार में परिभ्रमण करता है।" चेइअदव्वविणासे, इसिधाए पवयणस्स उड्डाहे । संजइचउत्थभंगे मूलग्गी बोहिलाभस्स || "चैत्य के द्रव्य का विनाश करना, साधु की हत्या करना, शासन की निंदा करना, और साध्वी के ब्रह्मचर्य का भंग करना, यह सब बोधिलाभ के मूल को जलाने में अग्नि के समान है।" चेइयदव्वं साहारणंच, जो दुहइ मोहिअमईओ । धम्म सो न विआणइ, अहवा बद्धाउओ नरए ॥ "मूढ मतिवाला जो पुरुष चैत्य के द्रव्य का और साधारण द्रव्य का विनाश करता है, वह धर्म को जानता ही नहीं, अथवा उसने प्रथम नरक का आयुष्य बाधा है ऐसा समझना । इन शास्त्रवचनों का स्मरण होते ही मंत्रीश्वर ने प्रतिज्ञा कि "जब तक गिरनार की इन्द्रमाला के चढावे का ५६ धडी सोना हाजिर न हो जाए और प्रभु के चरणों में समर्पित न करूं, तब तक चार आहार का त्याग ।" सभी संघजन स्तब्ध हो गए। मंत्रीश्वर के सत्त्व को देखकर सभी नतमस्तक हो कर झुक गए । कितनी दृढ प्रतिज्ञा ! कहाँ गढ गिरनार और कहाँ मांडवगढ ? ५६ धडी सोना कब आएगा और कब पेथडमंत्री का पारणा होगा ! सभी एक नज़र से ऊँटनी के आगमन की राह देख रहे थे । पेथड को प्रभु वचनों पर अपार श्रद्धा थी, देवद्रव्य का उधार सिर पर हो तो अन्न का एक दाना भी कैसे खाया जा सकता है? शासन का राग उनके रक्त की बूंद-बूंद में समाया हुआ था। उनके श्वासोश्वास में शासन की वफादारी की सुवास थी। दूसरी तरफ ऊँटनीयाँ पवन के वेग से योजन के अन्तर को मात्र २४ मिनिट जैसे कम समय में पूर्ण करके मालवादेश के मांडवगढ की तरफ जाकर जरुरत प्रमाण सुवर्ण को इकट्ठा करके पुनः गिरनार की तरफ उछलती, कूदती आ रही थी। गिरनार की मालिकी का अधिकार श्वेतांबर जैनों को मिल गया फिर भी जब तक मूल्य न चुकाये तब तक शांति से कैसे बैठ सकते हैं? पेथडमंत्री को चैन नहीं था । उन्हें १-१ पल, १-१ वर्ष की तरह लग रही थी। पेथडमंत्री सहित सभी यात्रिक जिस तरह
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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